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________________ सूक्तमुक्तावली केम जाण्यां ? उत्तरमा रोहिणीयाए कांटो भने कानना संयोगे जगवाननी देशना संबंधी अगाउ बनी हती ते बीना अथ इति जणावी अने विशेषमां कडं के, नगवाने कहेली गाथानो परमार्थ समजवामां थावेलो होवाश्री तमने मलवानी मने उत्कंठा थ तेथी तमने पत्र लेख्यो अने हुं तमने मल्यो, जेथी हुँ हवे महारे कसी वातनी उणीम रही नथी एम मार्नु बु. क्यां प्रनुनी वाणीनो जोग अने क्यां तमारो जोग, एटले सोनु अने सुगंध ए बेनो जोग मल्यो तो शा माटे खोटी थावं. वली खामी! तमे पण मने पकडवानुं कारण मेलव्युं पण तमारी पु. न्याश्ये बेतरायो नहीं. एवे समये जगवाननी वाणी दोहिली पण काम आवी. अनयकुमारे पुब्यु के-हे ना! ए गाथा तुं नावे करीने शिख्यो के कुलावे करीने शिख्यो ? रोहिणीये कह्यु के-स्वामी! में नासतां नासतां काने सांनट्यु. ते सांजलवानो तेमज याद राखवानो मारो नाव नहोतो पण कारणयोगे नावी प्रबलताने लीधे ते मने श्रावमी गश्. अजयकुमारे कडं के, था प्रमाणे सांजलेली गाथा काम श्रावी तो नावसहित शिखे ते तो न्याहाल थाय. रोहिणीयो कहे के, एमां शुं कहे ? श्रर्थात् एमज थाय. 'उत्तमनी संगते सुबुझि थावे अने कुबुद्धि जाय' ए कहेवतने अनुसरीने रोहिणीयो चोर हतो तेम बतां अजयकुमारनी संगत थवाथी तेनी कुबुद्धिनाश पामी अने सुबुद्धि उपजतां तेणे अजयकुमारने कडं के, में चोरी करीने जे जे अव्य मेलवेलुं ते ते नगरमध्ये जेनुं जेनुं होय तेने तेने उलखावीने स्वाधीन करी द्यो, के जेथी ते लोकोना जीवने श्रानंद थाय. त्यारपठी अजयकु. मारे सर्व वृत्तांत पोताना पिता (राजा)ने जणाव्यो. श्रेणीक राजाए नगरमां ढंढेरो फेरव्यो के “जे कां जेनी वस्तु गश् होय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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