SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ सूक्तमुक्तावली गुप्तपणे रहेला हता ते पण कान मांगीने कन्याए करेला प्र ननो उत्तर सांजलवा श्रातुर थइ रह्या हता, केमके तेमनी धारणा एवी हत्ती के, मदिरानी बाक उतरतां देवलोक संबंधी सुख जो ने देवांगना ( वेषधारी कन्या ) नां वचन सांजली ते पोतानां जे चरित्र हशे ते बकी उठशे अर्थात् ममां पत जे साधुं दशे ते तेना मुखमांथी नीकलीजशे. हवे रोहिणीयो सुतेलुं वन तथा देवांगनाना बोलो सांजली पोते देवता थयो एम मनमां विचार लावी बोलवा जाय बे, एटलामां तेने प्रभुजीए कहेली गाथा सांजरी यावी तेथी ते विषे निर्णय करवा लाग्यो, त्यारे तेने जणायुं के, जगवंते तो देवता जमीनथी चार गल उंचा अधर रहे एम कहेतुं हतुं श्रने या स्त्रीउए तो पावमी परेली जमीनने घडती देखाय बे, देवता मन चिंतव्युं काम करे तेमांनुं पण कां थ‍ शके एम जगातुं नथी, देवताए कंठने विषे धारण करेली फूलनी माला करमाय नहीं या तो करमाय बे, वली देवतानां नेत्र मींचाय नही मेखोमेख रहे तो मींचाय बे, माटे रखेने मुजने बेतरी पकडवानो या उपाय तो नथी कर्यो ? मने तो एमज लागे बे, कारण के प्रभुजीए तो ए चार लक्षण देवतानां कां ढतां अने मांनुं तो एके मालम पक्तुं नथी. एम निर्धार करी पोताना मनमां चिंतववा लाग्यो के, अजयकुमार धारे बे के एने ठगीने वात कढा पण हुं तेनो प्रपंच पामी गयो ढुं, ए बत्रीसो ने तो ढुं त्रीसो ढुं, माटे एने गोथां खवरावं तोज हुं खरो ! याम निश्चय करीने ते बोल्यो के, “में घणां दान कर्यां, घणां पुन्य कर्या, शीयल पाल्यां, संघ काढ्या, साहमी वत्सल कर्या, घणा पोसा पडिकमणां जिनपूजा व महोत्सव घणा कर्या, ए धर्मना प्रजावथकी, ते पुन्यना प्रजावथकी, हुं अहीं देवता थयो ढुं." Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy