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________________ नाषान्तर सहित. ४५ रण के ए चोर न पगो ने अर्थात् ते हमेशां एवा मोलमां फरतो हतो के तेने कोई चोर कली शके नहीं, तो पण श्रा अवसरे आववाथी अजयकुमारना मनमां तो खात्री थई पण या वखते कही शकाय तेवू नहोतुं. पढी रोहिणीयो थोडी वार थई एटले जुहार करीने उव्यो त्यारे कुमारे तेने कडं के, प्रनाते आपणे घेर देवसेवा करवा माटे श्रावजो. चोरे घणी खुसाली बतावतां उत्तर आप्यो के, वारु खामी. प्रनाते पोसह पारी अजयकुमार पोताने घेर आव्या. __ चोरने आमंत्रण करेवू ने तेथी ते श्रावशे माटे तेने मुखेथी ज ते चोर डे एम कबुल कराववानी युक्ति अनयकुमारे तुरतज करी. वखत थतां कबुल कर्या प्रमाणे रोहिणीयो आव्यो. कु. मारे दहींना बे वाडका जरावी तेमांना एकमां चंद्रहास मदिरा नखावी मुकी हती. रीतसर जुहारादि करीने कुमारे रोहिणीयाने पोतानी पासे जमवा बेसाड्यो. चंद्रहास मदिरा नाखेलो दहीनो वामको रोहिणीयाने आप्यो अने पोते चोखा दहीनो वाडको लीधो. जमी रह्या पली थोमीक वारे मदिर चढवाथी रोहिणीयो विकल थयो एटले देवतासंबंधीयुं पोताने सुवानुं जे ठेकाणुं हतुं त्यां घणी स्वरूपान देवांगना जेवी चार कन्या ने दिव्य वस्त्र पहेरावी चामर विजणा सहित उनी राखी हती त्यां उपाडी लावीने सुवाड्यो. घणो वखत थयो त्यारे मदिरानी गक ( नीशो ) उतरवाथी रोहिणीयो सावध थयो अने आंख उघामीने जोयुं तो मुक्ताफलना चं वा अमूल्य रत्ना दिए जडेला तेना जोवामां आव्या. ते वखते संकेत करी राख्यामुजब त्यां चामरादि लेई उनी रहेली चारे कन्या समकाले बोलवा लागी के, " जय जय नंदा, जय जय नहा, हे खामी ! तमे एवी शी पुन्याई करी के देवता थया ? ” अजयकुमार पण त्यां आगल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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