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________________ नाषान्तर सहित. ३ए थई तेमने पकमवा माटे दोड्या. नासतां नासतां नजीकमां वाहार श्रावती चोरोना दीगमा आवी तेथी मालनी गांसडी रस्तामां फेंकी देई चोरो जेनाथी जेम नसाय तेम जीव लईने नाग. चिलातीपुत्र मार्ग मुकी उबट मार्गे नागे. पूर्गपाल (कोटवाल) रस्तामाथी माल मल्यो ते कबज करी त्यांथी पाबो वढ्यो, परंतु शेठ तथा तेमना चारे पुत्रोए तेमनी केम मुकी नही अने पुरपाट घोडा दोमावी मुक्या. चिलातीपुत्रे जाएयु जे, शेठे सुसुमा कन्यामाटे केड करी अने महारे तो ए जीवनप्राण ले माटे मुकतां पण पूरवतुं नथी अने थोमीवारमां ते मने पकमी पाडशे. एम विचारी खड्ग काढी सुसुमागें शीर बेदी हाथमां पकमी लेई तेनुं धड पडतुं मुकीने नागे. कुमरीने मुई देखीने शेष तथा तेमना पुत्रो पाग वदया. चिलातीपुत्र सुसुमानुं मस्तक लेईने जतो तो त्यां रस्तामां एक कामनी नीचे एक साधुने काउसग्गमा रहेला तेणे जोया. आ वखते तेना एक हाथमां लोहीथी टपकतुं कन्यानुं मस्तक अने बीजा हाथमां नग्न तरवार हती. आवा आचरणे प्रवत्यो हतो बतां साधुने देखवाथी परीणामनी धारा बदलावाने लीधे तेणे साधुने कां के, अहोमुनी! मुजने धर्म बताव ? साधु, आ कोई उत्तम योग्य जीव जणाय ने माटे तेना आत्माना उपकारार्थे धर्मोंपदेश दे तो तेनो उद्धार थशे एम विचारी बोल्या के, “ उपशम, विवेक ने संवर.” आटलो उपदेश देई साधु आकासे उतपत्या अर्थात् अकाश मार्गे चाल्या गया. आबु देखी ए घणो चमत्कार पाम्यो अने मनमां विचारवा लाग्यो के, था तो महा महा विद्यापात्र देखाय डे, केम के बीजा जीव पृथवीतले चाले डे अने एतो अर्ध्व मार्गे चाल्या. पण ए मने शुं कही गया ते मारे विचार जोईये? एम आत्माने विषे धारणा धारतां धार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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