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________________ जापान्तर सहित. ॥ खलई उपर मगर ने वांदरानो प्रबंध ॥ समुद्रना पाणी मां रहेनारा एक मगरमछने वांदराए दीवो. तेनी साथे मोहोबत करी पारस जांबु विगेरे उत्तम फलो वांदराए तेने खवराव्यां स्वाद लागवाथी ते दररोज कांठा उपर यावी बेसतो हतो, ते वखत वांदरो तेने मीष्ट फल लावी या पतो हतो. एक वखत खातां खातां केटलांक फल वध्यां ते लेई जई मगरे पोतानी मगरीने छाप्यां. मगरीए फल खाधां ते ari स्वादिष्ट लागवाथी तेलीये मगरने पुयं के, श्रावां उत्तम फल क्यांथी लाव्या ? मगरे जणाव्यं के, एक महारो मित्र बे, तेणे यां. ते वखत मगरी कड़ेवा लागी के, स्वामी! जे प्राणी व उत्तम फल हमेशां खातो दशे तेनुं कालजुं तो जेने बीजी उपमा अपाय नहीं तेवुं अमृततुल्य मीष्ट हशे ! माटे तेनुं कालजुं मने लावी यापो. ते खावानी महारी ईवा बे; ते पूर्ण करो ! वली मने गर्जनुं कारण पण ते अर्थात् हुं गर्भवती ढुं ने ए खावानी मने ईशा थई के माटे हरकोई पण प्रकारे ( बल जेद प्रपंच कुरु कपट का वित्रं खल खंचपणे ) एने जो. लवीने तेमज एनी खीजमत करीने पासमां नाखी महारी पासे लावो. पठी हुं तेना कालजानुं जक्षण करी महारी ईछा पूर्ण करीश मगरे विचार्य जे, ए काम कांई सरल नथी, परंतु गर्भवती मगरीनी ईवा पूर्ण करवा माटे एने जेम तेम समजावी बने तेलुं खलप करीने पण मगरी पासे लाववो जोश्ये पर्छ । ते कांग उपर व्यो. त्यां तेने हमेशनी माफक फल लेई यावी वांद मध्यो मगरे तेने कयुं के, अरे जाई ! आज तो या तहारां लावेलां मिष्ट फल खावानी मने वीलकुल ईछा यती नथी. केमके महारुं मन घणुं व्यय थयेलुं बे. वांदराए २६ · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only २०१ www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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