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________________ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग ॥ अथ खलता विषे ॥ रस विरस नजे ज्यूं अंब निंब प्रसंगे, खल मिलण हुवे त्यूं अंतरंग प्रसंगे ॥ सु सु ससनेही जाणि से रीति जेदी, खल जन निसनेदी तेदशुं प्रीति केही ॥ १६ ॥ 900 जावार्थ:- खल लोक केवा बे ? तो के- जेवी रीते श्रांबानं ने ली मानुं काड जोडे होवाथी श्रांबानो रस विरस थाय बे एटले थांबानी के उनो खरो मीठासनो खाद फरी जई लींबडानी कमवासनी असर तेमां थाय बे, अर्थात् लींबडानी कुसंगते यो बगडे बे, तेवी रीते सऊन मनुष्य खलनी संगतेकरी ख्वार थाय छे, ते माटे हे ससनेही वाल्हा ! सांजल ! सांजल ! निःसनेही एवा जे खल मनुष्य तेनी साथै प्रीति न करवी, अर्थात् खलनी संगत टालवी. १६ - मगर जल वसंतो ते कपीराय दीठो, मधुर फल चखावी ते करो मित्र मीठो ॥ कपि कलिज जखेवा मत्स खेली खलाई, जलमहिं कपि बुद्धि बांडि दे ते जलाई ॥ १७ ॥ जावार्थ:- पाणीमां रहेनारा मगरने मीगं फल खवरावीने वांदराये तेने पोतानो मित्र कर्यो, त्यारे वांदरानुंज कालजु खावानी खलाई तेणे ( मगरे ) करी, परंतु वांदरो पोतानी बुद्धिये करी जलमणसाईनो त्याग करी मगरने पाणीमां मुकी पोते बाहार नीकली थाव्यो. माटे नीचनी सोबत करवी नही, कार के कोईक दीवस पण ए खत्ता खवरावे. क्वचीत एवो जोग बनी गयो होय तो वांदरानी पेठे विचार करीने तेवा खलनो तत्काल त्याग करवो. ११ स्पष्ट समजवा माटे श्र नीचे मगर ने वांदरानो प्रबंध लखीये बीये. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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