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________________ भाषान्तर सहित. अर्थ :- खसमय एटले जे जिनेश्वरनां सिद्धांतनां जाए बे, ने पर समय एटले जे मिथ्यात्वना ग्रंथना जाए बे, जे धर्मनी वाणीना वखाण करनार बे, परमगुरु एटले जे उत्तम गुरु तेमना ह्या जे तत्वने श्रात्मा निःशंकपणे जाणे, जे जविक रुपीया कज कदेतां कमल तेने विकवर करनारा डे, अने जानु ज्यूं तेज जासे तां सूर्यनपेठे जे ज्ञानना प्रकाशक बे, छाने वली जे शुद्ध मार्गना बतावनारा बे, एवाज गुरुने जजो एटले स्तवो - मानो. गुरुतत्व हढ करवामाटे गुरुथी कोण कोण जीव तर्या ने ते कहे बे:॥ सुगुरुवचनसंगे निस्तरेजीवरंगे ॥ निरमल नीर याए जेम गंगाप्रसंगे * ॥ सुणिय सुगुरु केशी वाणि राय प्रदेश | ॥ बढि सुरनव वासी जे इसे मोदवासी ॥६॥ अर्थ :- जेम मेलां पाणी होय अने तेज पाणी गंगानां जलमां जयां थकां पवित्र अर्थात् शुद्ध थाय तेम सद्गुरु वचनने संगे करी जीव सुखसमाधे निस्तार कहेतां पार पामे बे. जेम के सिकुमार गणधरनी वाणी सांजलीने प्रदेशीराजा प्रतिबोध पामी देवतानी गती पाम्या ने मोक्ष पण पधारशे तेम बीजा पण प्रतिबोध पामे. ते उपर विवरीने दृष्टांत कढेबे ॥ 5 ॥ गुरुतत्व उपर के सिकुमार गणधर घने प्रदेशी राजानो प्रबंध ॥ जरतत्रने विषे केके नामे देशमां श्वेतांबिका नामनी नगरीमां प्रदेशी राजा राज्य करतो हतो. ए नास्तिक मतवादी, अत्यंत अधff पापनां काम करवाने विषे रातो मातो, जानने पण नहीं * बीजी प्रतमां या ग्रंथना मूलमां श्र चरण नीचे मुजब बे. " निरमल नर था जेम गंगा प्रसंगे” (तेनो अर्थ ) जेम गंगाना जलवमे स्नान करवाथी मनुनी देह स्वच्छ या अर्थात् शरीर उपर लागेला मेलादि धोवाई जवाथी शरीर शुद्ध थाय बे ते सद्गुरुना संगे करी आत्मा निर्मल थाय बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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