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________________ १६६ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग नावार्थः- श्रावक केवो होय ? तो के-जे समकित पामीने हमेशां व्रत करे तथा सर्वज्ञ प्रजुनी सेवा (पूजा) करे, जे उजय टंक ( सवार सांऊ ) आवश्यक (प्रतिक्रमण ) करे अने आदर सहित गुरुने जजे; तथा जे दान, शीयल, तप, अने नाव, ए चार प्रकारनो धर्म आचरे, वली जे हरहमेश उत्तम गुरुनी सेवना मननेविष धारण करे अर्थात् सुसाधुनी नक्ति करे; एवो श्री जिनेश्वर लगवाने बार पर्षदानी आगल १ प्राणातिपात, २ मृषावाद, ३ अदत्तादान, ४ मैथुन, ५ परिग्रह, ए पांच अणुव्रत तथा ६ दीशी विरमण व्रत, लोगोपजोग विरमण व्रत अने अनर्थदंड विरमण व्रत, ए त्रण गुणव्रत तथा ए सामायक, १० देशावकासिक, ११ पौषध अने १५ अतिथी सं विनाग,ए चार शिदावत मलीने बार नेदे श्रावकनोधर्म प्रकाश्यो बे, श्रावकनां ए बार व्रत जे श्रादरे एटले पाले ते प्राणी तरे अर्थात् तेवो श्रावक लवरूपी समुख तरीने मोक्षसुख पामे. ७५ (मालिनी बंद) निशिदिन जिनकेरी जे करे शु सेवा, अणुव्रत धरि जे ते काम आनंद देवा ॥ चरम जिन वरिंदे जे सुधर्मे सुवास्या, समकित सतवंता श्रावका ते प्रसंस्या ॥६॥ जावार्थः- जे प्राणी प्रजुनी शुरू मने रात्रि अने दिन सेवा करे तथा अणु कहेतां मुनीथी पातला श्रावकनां व्रत ले ते धारण करे अर्थात् अहनिश जिनेश्वर नगवाननी सेवा करनारा तथा बार व्रत पालनारा श्रावक होय. एवा कोण थया ? तो के-श्रानंद अने कामदेव, के जेनुं समकित अने सत्यवादीपणुं श्री वीर लगवाने स्वमुखे वखाएयु ने अने ते प्रथम सौधर्म देवलोकने विषे गया . ७६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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