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________________ १६० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग वधे, तेम मूर्गए परिग्रहनी ममता वधे, वली ए परिग्रहनी ममता ते नर्क गतिनी शेरी कहेतां वाट डे अर्थात् ए नर्के लेई जनारी बे, माटे ए परिग्रहनी अधिक प्रीति तुं न कर. ६३ मणुअ जनम दारे फुःखनी कोमि धारे, परिग्रद ममता ए स्वर्गनां सौख्य वारे ॥ अधिक धरणी लेवा धातकी खंड केररी, सुन्नुम कुगति पामी चक्रिराये घणेरी॥६४ ॥ जावार्थः- ए परिग्रह थकी पोतानो मनुष्यनव हारी जाय अने कोडी गमे पुःखनी परंपराने पामे, वली ए परिग्रहनी ममताथी देवलोकनां सुख पण खोई बेसे, कोनी परे ? तो केजेम सुजुम चक्रवर्तिये सुख खोयां अने कुगति पाम्यो तेनी पेठे थाय. माटे परिग्रहनो ममत्व करवो नही. ६३ । ॥ परिग्रहनी ममताथी नर्के जनार सुजुम चक्रवर्तिनो प्रबंध ॥ सुजुम चक्रवर्तिए उ खंड साध्या. पनी बीजा कोई चक्रवर्ति साधता नथी एवा धातकी खंडमांहेला उ खंम साधु तो हुं खरो ! एवी परिग्रह उपर ममता थवाथी तेणे धातकी खंडमां जवा माटे बे लाख जोजनना लवण समअमां चरमरत्न मूक्यु. तेमां सैन्यादि सर्व परिवार बेगे. ए वेला चरमरत्नना हजार देवता सेवक बे तेमांना एके विचार्यु जे आ ब खंम साधतां केटलांएक वर्ष वही गयां तो वली श्रा बीजा उ साधतां तो केटलाए वर्ष वीती जशे ? माटे गानोमानो हुं महारी देवीने मली आवं. एम धारीने एक देवता गयो. एम बीजो, एम त्रीजो. एवी रीते हजारे देवता. चरमरत्न मुकीने हीडता थया - चाल्या गया. एटले चरमरत्न ड्यु. हाथी घोमा सहित सर्व लश्करनो नाश थयो भने सुन्नुम चक्रवर्ति मरीने सातमी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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