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________________ १४४ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग अने कह्यु के, जो तमे था तापसना सम खाउँ तो जावा दे, नहींतर नहीं जावा देजं. चकले कयु के-"जो हुँ पालो ना आवं तो था तापसनुं पाप महारे माथे. ए पाप लेवा जेवू नथी, परंतु ते हुँ तहारे वास्ते लेलं दूं."चकला, आई वचन सांजलतां तापसने क्रोध चढ्यो. तेणे एक हाथे चकलो अने बीजे हाथे चकलीने पकडी पुब्यु जे-कहो रे कहो!तमे मने पापीकेम कह्यो? में एवं शुं पाप कर्यु ,के तमे मने पापी उराव्यो ? चकलारुपे देवताए तापसने कह्यु के, त्यारे तमे शो धर्म करो बोते तो कहो ? अमे तो तमारा गुणने उलख्या; पण तमे तमारा जे साधुना गुण तेने ज्यारे नथी उलखता त्यारे तमे शुं धर्म करता हशो ? तापस कहे जे-तमे जनावर ज्यारे जाणोगे त्यारे तुमथकी अमे कोई जश्शुं ? अमे श्रमारो धर्म जाणताज होश्शुं अर्थात् जाणीये जबीये. पदीए कह्यु के, जो जाणो जो तो कहो ? तापसे कह्यु के, तुं तो कहे ? तहारुं हुं डहापण तो जो ? चकलीए कह्यु के, त्यारे तुं काईए जाणतो नथी, माटेज तहारा सम खवराववा पडे डे तो ! तापस कहे के, रे रांड ! एवं शुंने ? ते वखते पदी बोदयां के, तमारा धर्मशास्त्रमा कडं जे-"अपुत्रस्यगति स्ति, खर्गोनैव च नैवच ॥ तस्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा, स्वर्गेगतिमानवा ॥१॥ अर्थ-अपुत्रीयानी सारी गति थती नथी अने तेने स्वर्ग मलतुं नथी, ज्यारे पुत्रनुं मों जुवे अर्थात् जेने पुत्र होय तेज माणस खर्गे जाय .” माटे खुट्वज देखाय के, तमे तो मांग (फोकट ) खोटी था बो. पंखीनां श्रावां वचन सांजली तापस ध्यानश्री चुक्यो, अने विचारवा लाग्यो के, ए वात तो खरी ! जुर्म-जनावर सरखां पण महारी वात जाणे ! एना जेटली पण महारामां समजण नथी. एवं मनमां चिंतवी त्यांथी नजीक एक नगर हतुं त्यां श्रावी राजसनामां गयो. राजा तापसने देखी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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