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________________ १४२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग जावार्थ:- घासनो अग्नि पण बालतो बालतो जेम सर्व वस्तुने बाली नाखे, तेम गुणरूपीया रत्ने जरी जे काया, तेने क्रोध बाली नावे बे. ए क्रोधरूपी या चंगालनं जोर क्यारे मटे ? - के ज्यारे प्रसम कड़ेतां उपसमरूपीयो जलधर एटले मेघ वर्षे त्यारे क्रोधरूपी निमटे, अर्थात् घटने विषे उपशम समता प्रगट थाय त्यारे क्रोध नाश पामे ने उत्तम गुरुनी शिखामण मनमां धारण करे तो पामेलो मनुष्यजव सफल थाय. माटे सुगुरुनी शि. खामण मानीने उपशम श्रादरी क्रोधने दूर करवो. 89 धरणि परशुरामे क्रोधे निक्षत्रि कीधी, धरणि सुनुमचक्रे क्रोधे निःब्रह्म साधी ॥ नरकगति सदायी क्रोध ए दुःख दाई, वरज वरज जाई प्रीति दे जे वधाई ॥ ४८ ॥ जावार्थ:- क्रोध की परशुरामे पृथ्वी निःक्षत्री कीधी अर्थात् तेना जाणवामां जेटला क्षत्री श्राव्या ते सघलाने मारी नाख्या, सुजुम चक्रवर्तीए ब्राह्मण विनानी पृथ्वी करीत को क सघला ब्राह्मणोने मारी नाखीने पृथ्वी पोताने कबजे करी, माटे नर्कगतिना सखाई एटले आपवावाला ए दुःखदाई कोधने हे नाई ! तुंबांग ! बांड ! वली क्रोध ए प्रीतने पण नसामना रोठे. ॥ क्रोध करवा उपर परशुराम ने सुजुम चक्रवर्त्तीनो प्रबंध ॥ - प्रथम देवलोके एक मिथ्यात्वी ने एक जैन, एवा वे देवताने मांदोमांदे धर्मनो विवाद थयो नित्यप्रत्ये ते परस्पर विवाद करता एकेकनो धर्म वखाणवा लाग्या. बेवट ते तेनी ( धर्मनी ) परीक्षा करवा माटे मृत्युलोकमां श्राव्या. ए वखत मिथुला नगरीना राजा पोतानी मेले लोच करीने ( दीक्षा श्रंगीकार करीने) तत्काल विहार करी जता हता. तेमने जोई मिथ्यात्वी देवताप्रत्ये जैन देवता कहेवा लाग्यो के, आप एक शेरमीए अर्थात् रस्ते जवाना एक मार्गे की मी यो विकुर्विये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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