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________________ परंतु तेमणे समावसरणमा पालन जो तो वे नाषान्तर सदित. १शए ज तेमना मों आगल कहेवा मांड्या. अशोक वृक्ष पाठ महाप्रातिहारज तद्रूप जे बाह्यलक्ष्मीवंत , वली देवता सेवामां हाजरना हाजर , अणहुते पण कोडिगमे देव सेवा करे , त्रण जुवनना नायक , चामर बत्र सिंहासनादिके विराजीत बे. एवा वर्णव सांजलतां वांत पांचसे ने एक तापसने केवलज्ञान उपन्यु. त्यारपती आगल जतां समोवसरण दी. ते वखते तापसे पुब्युं के, स्वामी ! आ शुंडे ? गौतमस्वामीए कह्यु के, एतो अमारा गुरुर्नु समोवसरण बे. ते सांजलीने बाकी रहेला पांचवें ने एक तापसने केवलज्ञान उत्पन्न थयु. एवी रीते सर्वे तापसो केवली थया. पनी गौतमखामी कहे के, जे रीते हुँ गुरुने वांडं तेज प्रमाणे तमे पण वांदजो. तापसोए कह्यु के, वारु स्वामी ! परंतु तेमणे पोताने केवलज्ञान उत्पन्न थयार्नु जणाव्युं नहीं. हवे प्रजुना समोवसरणमां गया त्यारे गौतम स्वामीये प्रजुने प्रदक्षिणा देई वांद्या अने पाउल जोयुं तो एक पण तापसने दीगे नही. पड़ी केवलीनी संप्रदायमां तेमने बे. ठेला जोई कदेवा लाग्या के, हे महानुनाव ! तमने में नहोतुं कां? जे हुं वांडं तेम तमे पण प्रजुने वांदजो ! तमे त्यां केम जई बेग ? ते वखते जगवंते कह्यु के, हे गोतम ! केवलीनी आशातना म करो. ए सघला केवली . त्यारे गौतमस्वामीये जगवंतने पुब्युं के मने केवलज्ञान उपजशे के नही ? प्रजुए जणाव्युं के तने डे ( थोमी उम्मर बाकी रहेतां) उपजशे, एटले तुं अने हुं बरोबर थश्शुं. ते सांजलीने गोतमस्वामी हर्षवंत थया. आ कथामां सार ए ग्रहण करवानो डे के, गौतमस्वामीने तपस्या करवाथी घणी लब्धि उपजी अने तेवडे मनमानी जात्रा करी शक्या. तथा तापसोने जमाड्या शक्या. माटे तप करवो के जेथी लब्धि उपजे अने मागं कर्म पण त्रुटे. ४४ ...... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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