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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
इनं कानस्सग्गमिच्चाइ सुत्तं जलिय पलंबिय नुय कु प्पर धरियना निहो जाए ं चनरंगुल तविय क डिय पट्टो संजइ कविधाइ दोसर हियं काउस्सग्गं जंका नं जक्कमं दिकए श्यारे हियए धरिय नमोक्कारे एल पारिय चनवीसं पडिलेहणान कार्यं काए वितत्ति या चैव कुण । साविया पुण पिहि सिरहिययव पन्नारसकुएइ । उहिय बत्ती सदोसर दियं पणवीसा वस्तय मुहं कि कम्म कार्यं श्रवणयंगो करजुय विह्नि धरिय पुत्तीदेव सियाइयाराणं गुरुपुरन वियड एवं आलोयण दंमगं पढ । तनुं पुत्तीए कहीस पाउंड वा डिजेहिय वामं जाए हिठा दाहि णं चन्द्वं कालं करजुय गहिय पुत्तिसम्मं पडिक्कमण सुत्तं नगइ || तब दव जावुन हिम इच्चाइ दंमगं पढित्ता बंदणं दानं पण गाइ सुजइ सुत्तिन्नि खामित्ता सामन्न साहू सुपुल उवणायरिएण समं खामणं कार्यं त तिन्नि साहू खामित्ता पुणो की क म्मं काउं उद्ध डिन सिर कयंजली आयरियनवनाए इच्चाइ गाहा तिगं पढित्ता सामाश्यसुत्तं वस्सग्गदंमगंच नणिय काउस्सग्गे चारित्ताश्यारसुद्धिनिमित्तं नवो यगं चिंते । त गुरुणा पारिए पारिता संमत्तसु
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