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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । सोपान पंक्ति समान, बलि० ॥ अ० ॥ ३ ॥ पांच आरे दोहिलो हो लाल, तीरथ दर्शन स्वल्प, बलि० । पुण्यहीन पा पामें नहीं हो नहीं हो लाल, मरुधरनां जिम कल्प, बलि० ॥ अ० ॥ ४ ॥ गर्भतणां परतापथी हो लाल, विजया न जीत्यो कंत, बलि० । तेह कारण नाम थापियो हो लाल, अजितनाथ भगवंत, बलि ॥ अ० ॥ ५ ॥ नाम यथारथ साचव्यो हो लाल, ३३६ जीती मोह नींद, बलि० । अजित अजित पदवी वरी हो लाल, J सेवे सुर नर इंद, बलि० ॥ अ० ॥ ६ ॥ अजितनाथ करुणा करो हो लाल, होवे सेवक जीत, हो लाल, बलि० । आतम लक्ष्मी संपजे प्रगटे 'वल्लभ' प्रीत, बलि० ॥ अ० ॥ ७ ॥ [ राणकपुर का स्तवन । ] राजकपुर रेलीयाममुं रे लाल, श्री आदीधर देव, मन मोठ्यूँ रे । उत्तंग तोरण देहरुं रे लाल, निरखीजे नित्यमेत्र, म० ॥ रा० ॥ १॥ चौवीस मंडप चिह्न दिशे रे लाल, चउमुख प्रतिमा चार, म० । त्रिभुवन दपिक देहरू रे लाल, समोवड़ नहीं संसार, म० रा० २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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