SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्य-वन्दन-स्तवनादिः । ३३५ समवसरणमें भाव जिनंदा रे, शोभे उड्ड-गणमें जिम चंदा रे, ___टारे जन्म मरण भव फंदा। सेवो० ॥३॥ प्रभु-मूर्ति प्रभु सम जानी रे, अंगीकार करे शुभ ध्यानी रे, एतो मोक्षतणी छे निशानी । सेवो०॥४॥ नहीं हाथ धरे जपमाला रे, नहीं नाटक मोहना चाला रे, प्रभु निर्मल दीनदयाला ॥सेवो० ॥५॥ नहीं शस्त्र नहीं संग नारी रे, प्रभु वीतराग अविकारी रे, जग जीवतणा हितकारी । सेवो० ॥६॥ प्रभु-मुद्रा शान्त सुधारी रे, आतम आनंद सुखकारी रे, 'वल्लभ' मन हर्ष अपारी ।। सेवो०॥७॥ [तारङ्गाजी का स्तवन ।] अजित जिनेश्वर भेटीये हो लाल, तीर्थ तारंगा सुखकार, बलिहारी रे । यात्रा करो भवी भावथी हो लाल, समकित मूल आचार, बलि० अ०॥१॥ थया उद्धार पूर्वे घणा हो लाल, कुमारपाल वर्तमान, बलि० । कर्यो उद्धार सुहामणो हो लाल, गणधर थासे भगवान,बलि०॥अ० ॥२॥ चैत्य मनोहर शोभतुं हो लाल, . मेरु महीधर जान, बलि। मुक्ति स्वर्ग आरोहणे हो लाल, समा Jain Education International For Private & Personal Use Only "www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy