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________________ २७० अतिक्रमण सूत्र। पूजा की है, तपस्या के कारण जिस का तेज शरत्काल के प्रखर सूर्य से भी अधिक प्रकाशमान है और आकाश-मार्ग से घूमते घूमते इकट्ठे हुए ऐसे जङ्घाचारण, विद्याचारण आदि मुनियों ने सिर झुका कर जिस को वन्दन किया है, असुरकुमार, सुवर्णकुमार, किन्नर और नागकुमारों ने जिस को अच्छी तरह नमस्कार किया ह, करोड़ों देवों ने जिस की स्तुति की है. साधु-गण ने जिस को विधिपूर्वक वन्दन किया है, जिस के न कोई भय है, न कोई दोष है, न किसी तरह का राग तथा रोग है और जो अजेय है, उस श्रीअजितनाथ को मैं आदरपूर्वक प्रणाम करता हूँ। . .. * आगया वरविमाणदिवकणग, रहतुरयपहकरसएहिं हुलिअं । ससंभमोअरणखुभियलुलियचल, कुंडलंगयतिरीडसोहंतमउलिमाला ।। २२ ।। ( वेड्ढओ।) - जं सुरसंघा सासुरसंघा वेरविउत्ता भस्तिसुजुत्ता, आयरभूसिअसंभमर्पिडिअसुसुविम्हियसबबलोधा । ___ उत्तमकंचणरयणपरूवियभासुरभूसणभासुरिअंगा, गायसमोणय भत्तिवसागय पंजलिपेसियसीसपणामा॥२३॥ ___ (रयणमाला) * आगताः वरविमानदिव्यकनकरथतुरगसंघातशतैः शीघ्रम् । ससंभ्रमावतरणक्षुभितलुलितचलकुण्डलाङ्गदकिरीटशोभमानमौलिमालाः ॥२२॥ यं सुरसंघाः सासुरसंघाः वै वियुक्ताः भक्तिसुयुक्ताः, आदरभूषितसंभ्रमपिण्डितसुष्ठुसुविस्मितसर्वबल घाः । .... उत्तमकाश्चनरस्नप्ररूपितभासुरभूषणभासुरिताङ्गाः, - गात्रसमवनताः भक्तिवशागताः प्राजालप्रेषितशीर्षप्रणामाः ॥२३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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