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________________ भरसर की सज्झाय । १५९. २१. सुदर्शन श्रेष्ठी - यह परस्त्रीत्यागव्रत में प्रतिदृढ था । यहाँ तक कि इस व्रत के प्रभाव से उस के लिये शूली भी सिंहासन हो गई । २२-२३. शाल- महाशाल - इन दोनों भाइयों में परस्पर बड़ी प्रीति थी । इन्हों ने अपने भानजे गागली को राज्य सौंप कर दीक्षा' जी । फिर गांगली को और गागजी के माता-पिता को भी दीक्षा दिलाई । ० पृ० २८६ । २४ शालिभद्र - इस ने सुपात्र में दान देने के प्रभाव से अतुल सम्पत्ति पाई। और अन्त में उसे छोड़ कर भगवान् महा-वीर के पास दीक्षा ली । २५. भद्रबाहु - चरम चतुर्दश-पूर्व-धर और श्रीस्थूलभद्र के गुह। ये नियुक्तियों के कर्ता कहे जाते हैं। २६. दशाणभद्र - दशापुर नगर का नरेश । इस ने इन्द्र की समृद्धि को देख अपनी सम्पति का गर्व छोड़ कर दीक्षा ली। - प्रा० नि० गा० ८४६ तथा पृ० ॐ५९ । २७. प्रसन्नचन्द्र - एक राजर्षि । इस ने क्षणमात्र में दुर्ध्यान से सातवें नरक योग्य कर्म-दल को इकट्ठा किया और फिर क्षणमात्र में ही उस को शुभ ध्यान से खपा कर मोक्ष पाया । - प्राव० नि० गा० ११५०, पृ० ५२६ । २८. यशोभद्रसूरि - श्रीशय्यंभव सुरि के शिष्य और श्रीभद्रबाहु तथा वराहमिहिर के गुरु | २६. जम्बूस्वामी - अखण्डित बाल ब्रह्मचारी, प्रतुल वैभवत्यागी और भरत क्षेत्र में इस युग के चरम केवली । इन को संबो धित करके सुधर्मास्वामी ने श्रागम गूंथे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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