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________________ तृतीय प्रकाश. ३११ तारुं शरीर अतिशय सुंदर ने लक्षण - व्यंजन गुणोथी युक्त बे, तेमज अनेक प्रकारनी व्याधिरहित, सौभाग्यवालुं, उन्नत, मनोज्ञ, अने पंचेडियोथी शोभायमान छे, वत्स, तेथी तारे प्रथम शरीरना ते सौभाग्यादि सर्व गुणाने - नवी पछी योग्य वयवाला थइ दीक्षा ग्रहण करवी. " राजकुमार बोल्यो, “हे माता पिता, तमोर जे मारा शरीरनुं स्वरूप कही बतान्युं, ते मानव शरीर निवे को दुःखनुं घर, अने सेंकको व्याधिप्रोनुं स्थान रूप डे वल्ली ते अस्थिरुप काष्ठपिंजरवा, नसो तथा ओररूप जालथी वीटाएंलु, मृतिकाना पत्रनी पेठे 5बेल, अशुचि पुद्गलोथी उत्पन्न ययेनुं, " समन, परुन, विध्वंसन धर्मवाळु अप्रथम नेपाली अवश्य त्याग करवा योग्य बे ; तेथी कयो बुद्धिमान पुरुप तेवा शरीरने माटे राचे ? " माता पिता कां, “पुत्र, या तारा पूर्वज - वकिलोनी परंपराथी वेल - स्तीर्ण धन, सुवर्ण, रत्न, मणि, मोती, शंखरत्न, प्रवालां, प्रमुख स्वाधीन प्रधान दोलत ते सात पेढी सुधी गरीब प्रमुखने आपतां तां दय पामे ते न - थी, एवा व्यनो स्वेछा प्रमाणे उपभोग करने तारी मनोवृत्ति प्रमाणे चानारी नेता समान रूप लावण्यवाली घी राजकन्याने परणी तेमनी साधे आर्यकारक सांसारिक सुख जोगवी ते पछी तूं दीक्षा ग्रहण करजे. " प्रतिमुक्तकुमार बोढ्यो - " हे पूज्य माता पिता, तमोए जे अव्यादिकनुं स्वरूप कहुं, ते प्रव्य निचे करीने अग्नि, जल, चोर, राजा ने जागीदारो प्रमुख घणाने साधारण बे ने परिणामे अध्रुव े तेथी ते पण पेहेला - थवा पी अवश्य त्याग करवा योग्य थशे. जे मनुष्यसंबंधी कामजोगो बे, ते पण अशुचिअने अशाश्वत बे; ते साये वात, पित्त, कफ, शुक्र-वीर्य अने शोणित करनारा बे. अहं कामनोग शब्दयी वातपित्तादिकना आधारनूत एवा स्त्री पुरुषना शरीरो जाणवा. वल्ली ते अमनोज्ञ तथा दुगंग उत्पन्न करनारा मूत्र ने विष्टार्थी परिपूर्ण, निःश्वास अने उच्छासी दुर्गंधी, अज्ञान जनोए सेवित . संसारने वधारनारा होवाथी साधुजनने निंदनीय े. तेना फन वां कटु बे, तेथी तेवाओने माटे कोण पोताना जीवितने निष्फल करे ? " पुत्रना या वचन सांजली तेना माता पिता विचारमां पडी गया. ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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