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________________ ३१० श्री आत्मप्रबोध. " बी प्रमाणे माता पिताने कधुं, “हे माता पिता, में जे श्री वीरमनी पासे धर्म सांजो अने ते धर्म मने रुच्यो बे. त्यारे माता पिता बोब्या. “ पुत्र तने धन्य े. तुं कृतपुण्याने या लोकमां कृतार्थ थयो छे ; के जे तें श्री वी. म पासे धर्म सांजोने वली ते धर्म तने रुचिकर थयो. " कुमार बोल्यो. हे माता पिता, हुं ते प्रजुना मुखथी धर्म सांजली या संसारना नयथी उनि थइ गयो हुं. मने जन्म मरणनो अति जय बाग्यो बे ; तेथी तमारी आज्ञाथी हूं ते वीरमनु पासे दीक्षा लेवा इच्छा राखुं बुं. " ते अनिष्ट, अमनोश, अमिय पूर्वे नहि सांजलेल वचन सांजली तत्काल माता शोक सागरमां मन थ‍ गया. तेमनुं हृदय दीनवत् खेद पामी गयुं ने मन उपर ग्लानि प्रसरी गइ. तकाल ते पुत्रवियोगना जयथी मूर्च्छित या गृहना प्रांगणामां सर्वांगे पमी गया. ते वखते दासी सत्वर सुवर्णनो कलश लइ, ते कलशना मुखमांथी नीकलती शीतल ने निर्मल जननी धारावडे ते राणीना शरीरने सिंचन कर्तुं अने वायुनो उपचार कर्यो एटले ते राणी चेतनाने प्राप्त थया. तत्काल ते विलाप करता राणीए पुत्रने आ प्रमाणे कहुं, " हे पुत्र, तुं मारे एकज पुत्र े. इष्ट, कमनीय ने प्रिय बे. हे वत्स, अमूल्य रत्नना आचरणना कंमीया समान, हृदयने आनंद उपजावनार ने उंबराना पुष्पनी पेठे तुं दुर्लन बे ; माटे एक क्षणमात्र पण तारो वियोग सहन करवाने मे शक्तिमान नथी ; तेथी ज्यां सुधी अमे जीवीए त्यां सुधी तुंरमां रहे, ते पछी तुं सुखे करी चारित्र ग्रहण करजे. " माताना वां वचन सांगळी राजकुमार या प्रमाणे बोल्यो - " तमे कहो छो ते सत्य बे, परंतु या मनुष्यनव के जे अनेक जन्म जरा मरणवालो ने तेमज शरीर ने मन संबंधी अत्यंत दुःख - वेदना अने उपड़वोथी युक्त बे, ते अध्रुव - अनित्य बे. ते संध्याना वादलाना रंग सरखो, जबना परपोटा जेवो ने विद्युत् लतानी पेठे चंचल छे. शरीर के जे समन, पमन, विध्वंसन धर्मवाळु ने पेहेला अथवा पनी अवश्य त्याग करवा योग्य बे. aal विचार करो के, आपणामांथी कोण जाणे बे के परलोकमां पेहेलो कोण जो ? नेपछी को जशे ? तेथी तमारी आज्ञावमे हु हमणांज दीक्षा लेवाइछा राखुं बुं. माता, " राजकुमारना या वचनो सांजली माता पिता वोढ्या - " हे पुत्र, आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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