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________________ (0) गेरे वांचवामां आसनाने सारी मदद करी छे, जो जाषांतरकार या ग्रंथनामुचित rer बाह्ययंतर सुंदर स्वरूपने प्रसिद्ध थयेलुं जोइ शक्या होत तो ते - मना हृदयमां पूर्ण संतोष थात ने आ प्रसिद्ध करनारी संस्थाने सारं अभिनंदन मळत; परंतु कर्मयोगे एम बनी शक्युं नहीं, एटलं असंतोषनं कारण थयुं बे. या प्रसंगे जावतां आनंद उपजे बे के, नामदार नीकाम सरकारना ऊवेरी बाबू पन्नालाल पूरणचंदना प्रपौत्र बाबू प्रतापचंदजी गुलाबचंदजी ए पोताना स्वर्गवासी पिता बाबूसाहेब गुलाबचंदजीना स्मरणार्थे या उपयोगी ग्रंथ प्रगट करवामां उत्तम सहाय आपी छे. स्वर्गवासी बाबू गुलाबचंदजी पोताना टुंक जीवनमां पण धार्मिक वृत्ति, तेमज पोताना ऊबेरी तरिकेना धंधामां असाधारण उदारतायुक्त अने कर्त्तव्य निष्ट ययेला छे, तेवा पोताना स्वर्गवासी पिताना नामना स्मरणार्थे पितृनक्त युवान पुत्र बाबू प्रतापचंजीनी आ सत्प्रवृत्ति खरेखर धन्यवादने पात्र छे, उद्योग, ज्ञान ने धार्मिक कार्योमां उत्साहथी आगळ बघता युवान बाबू प्रतापचंद्रजीनी या प्रवृत्ति वीजा गृहस्थाने अनुकरण करवा योग्य बे, एवी नम्र सूचना आपी ते आपली सहायताने माटे अंतःकरणथी आजार मानवामां आवे छे. सदरहू ग्रंथनी शुद्धिने माटे यथाशक्ति प्रयत्न करवामां आवेलो बे छतां स्थपणामां सुलन एवा प्रमाद तथा दृष्टि दोषादि दोष के प्रेसना दोषने asने कोइ स्थाने स्खलना थइ होय तो मिथ्यादुष्कृत पूर्वक दमा याचीए छीए. सर्व जैन प्रजा पोताना धार्मिक साहित्यना गौरवमां, समृद्धिमां तथा कल्याशक्तिमा वृद्धि करनारा, या उपयोगी ग्रंथने पठन पाठन तथा वांचननो उत्तम उपयोग कर आदर आपशे तो करेलो श्रम सफळ थयेलो मानी या संस्था पोतानी वी प्रवृत्तिमां विशेष उत्साहित थशे. छवेट नीचेनी जावनावडे आत्मानुं उद्बोधन करीरी या प्रस्तावना समाप्त करवामां आवे छे. " प्रवर्त्ततां सत्प्रवृत्या, निवर्त्ततां सदा तेषां " सर्व साधी अंतराय करनारी विपत्तिनी सदा निवृत्ति याओ. " ॥ १ ॥ सधर्मसुहृदो ऽखिलाः । विपत्तत्रांत यकृत् " ॥१॥ Jain Education International सत्प्रवृत्ति प्रवत्त अने तेमने ते प्रवृत्तिमां वीर संवत २४३८, आत्म संवत १७ आश्विन शुक्ल तृतीया रवीवार आत्मानंद भुवन. "} श्री जैन श्रात्मानंद सना. जावनगर. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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