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________________ झाझा THEHESH Thbdu RANIH SARAN Faridwarananth DireTORIES SabPASTE ANDAmarneetin Shiri-TRIER- 144 HAPER a इफोन रखा करताना तान चीन डॉ०सागरमल जन का जन्म सन् 1632 में शाजापुर में हुआ / 18 वर्ष की अवस्था में ही आप व्यावसायिक कार्य में संलग्न होगये। व्यवसाय के साथ-साथ आपका अध्ययन भी कुछ व्यवधानों के साथ चलता रहा। आपने व्यापार विशारद, जन सिद्धान्त विशारद, साहित्यरत्न और एम० ए० की उपाधियाँ प्राप्त की। एम० ए० (दर्शन) में आपने वरीयता सूची में प्रथम स्थान प्राप्त किया और कला सकाय में द्वितीय स्थान प्राप्त कर रजत पदक प्राप्त किया। उसके पश्चात् अध्ययन की रुचि को निरन्तर जागृत बनाये रखने हेतु व्यवसाय से पूर्ण निवृत्ति लेकर शासकीय सेवा में प्रवेश किया और रीवां, ग्वालियर और इन्दौर के महाविद्यालयों में दर्शनशास्त्र के अध्यापक तथा हमीदिया महाविद्यालय भोपाल में दर्शन विभाग के अध्यक्ष रहे / सम्प्रति आप पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के निदेशक; अ० भा. जन विद्वत् परिषद् के उपाध्यक्ष, अ०भा० दर्शन परिषद् के कोषाध्यक्ष एवं 'दार्शनिक' तथा 'श्रमण' के क्रमशः प्रबन्ध-सम्पादक एवं सम्पादक हैं। विद्या के क्षेत्र में भी आपकी प्रतिभा को सदैव सम्मान मिला है। आप अनेक विश्वविद्यालयों में अध्ययन-परिषद्, कलासंकाय एवं विद्यापरिषद के सदस्य रहे हैं। ___आपने जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शन पर पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की है। आपके 6 ग्रन्थ एवं 70 उच्चस्तरीय लेख प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही आपने अनेक ग्रन्थों का कुशल सम्पादन भी किया है। 凯凯 झाझा HERAYANGaisirainROK JHESH
SR No.003604
Book TitleJain Karm Siddhant ka Tulnatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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