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________________ लेखकीय तत्त्वार्थसत्र जैनधर्म का एक ऐसा ग्रंथ है जिसे उसके सभी सम्प्रदायों में मान्यता प्राप्त है। इससे यह भी फलित होता है कि यह साम्प्रदायिक विघटन एवं साम्प्रदायिक मान्यताओं के स्थिरीकरण के पूर्व की रचना है। फिर भी साम्प्रदायिक आग्रहों के कारण प्रत्येक परम्परा के विद्वान इसे अपनी ही परम्परा में निर्मित होना बताते हैं। इस सन्दर्भ में विभिन्न परम्परा के विद्वानों एवं मुनियों ने अपने पक्ष के समर्थन में पर्याप्त लेख लिखे हैं । श्वेताम्बर परम्परा में पण्डित सुखलालजी ने अपनी तत्त्वार्थ सूत्र की भूमिका में एवं आचार्य श्री आत्मारामजी ने 'तत्त्वार्थ सूत्र जैनआगम समन्वय' नामक ग्रन्थ में पर्याप्त परिश्रम करके तत्त्वार्थ सूत्र को श्वेताम्बर मान्य आगमों से तुलना करके उसको श्वेताम्बर परम्परा में निर्मित होना बताया है। इसी सन्दर्भ में आचार्य श्री सागरानन्दसूरिजी ने "श्री तत्त्वार्थसूत्र कर्तृतन्मत निर्णय' में तो अनेक प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वाति श्वेताम्बर परम्परा के हैं। साथ ही उन्होंने यह भी दिखाया है कि दिगम्बर परम्परा के द्वारा तत्त्वार्थसूत्र का जो पाठ निर्धारित किया गया है उसमें और श्वेताम्बर मान्यपाठ में कौन सा पाठ युक्तिसंगत है। इसके विपरीत दिगम्बर परम्परा में पं० परमानन्दजी शास्त्री ने 'तत्त्वार्थसूत्र के बीजों की खोज' नामक लेख में, पं० जुगलकिशोर जो मुख्तार ने अपने विविध लेखों के द्वारा अपने ग्रन्थ 'जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश' में, पं० फूलचंद जी सिद्धान्तशास्त्री ने अपनो सर्वार्थसिद्धि की भूमिका में, पं० कैलाशचंदजी ने 'जैनसाहित्य के इतिहास, भाग-२' में तथा पं० दरबारीलाल जी कोठिया ने अपने कुछ निबन्धों के माध्यम से जो कि 'जैन दर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन' में संकलित हैं, यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि तत्त्वार्थसूत्र दिगम्बर परम्परा का ग्रन्थ है और उसका आधार षट्खण्डागम और कुन्द-कुन्द के ग्रंथ हैं। संक्षेप में इन विद्वानों की मान्यताएँ निम्न हैं___ (१) तत्त्वार्थसूत्र गृद्धपिच्छाचार्य की कृति है, जो कि दिगम्बर परम्परा में हुए हैं। (२) उमास्वाति यह नाम तत्त्वार्थ-भाष्य के कर्ता का है, जो श्वेताम्बर परम्परा में हुए हैं और तत्त्वार्थ के कर्ता से पर्याप्त परवर्ती है। ___ (३) तत्त्वार्थसूत्र का सर्वार्थसिद्धि मान्य पाठ ही वास्तविक पाठ है और श्वेताम्वरों ने उसी के आधार पर अपना पाठ और भाष्य निर्मित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
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