SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय तत्त्वार्थसूत्र जैन धर्म के सभी सम्प्रदायों का सर्वमान्य ग्रन्थ है। तत्त्वार्थसूत्र को जैनों की सभी परम्पराओं द्वारा मान्यता दिये जाने का कारण यह है कि इस ग्रंथ में अत्यन्त संक्षेप में जैन धर्म एवं दर्शन की सभी मूलभूत मान्यताओं को प्रस्तुत कर दिया गया है। इसीलिए यह ग्रन्थ जैनधर्म का एक प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है। फिर भी इसके लेखक, लेखन काल, परम्परा आदि को लेकर परस्पर मतभेद है। विभिन्न सम्प्रदायों के विद्वान इसे अपने-अपने ढंग से निरूपित करते हैं। मात्र यही नहीं, इसे अपने-अपने सम्प्रदाय का ग्रन्थ सिद्ध करने के प्रयत्नों में उन्होंने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी लगाये हैं। फलतः विवाद के महे बढ़ते ही गये। प्रो० सागरमल जैन जैनों के विभिन्न सम्प्रदायों के ग्रंथों के सूधी अध्येता हैं। उन्होंने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक निष्पक्ष रूप से तत्त्वार्थसूत्र के लेखक, रचना काल, लेखक की परम्परा आदि प्रश्नों पर विचार किया है और अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं। उनके निष्कर्षों से कौन सहमत होता है या असहमत, यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण नहीं है । महत्त्वपूर्ण तो यह है कि उन्होंने अपने इस लेखन में एक तटस्थ दृष्टिकोण अपनाकर सत्य को प्रस्तुत करने का साहस किया है, यही उनकी इस कृति की विशेषता है। आशा है कि विद्वत् जगत में उनकी इस कृति का स्वागत होगा। हम इस कृति के प्रणयन हेतु प्रो० सागरमल जैन के प्रति आभारी हैं। इसके लिये उनके प्रति मात्र कृतज्ञता ज्ञापित कर देना भी पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही संस्थान के शोधाधिकारी डा. अशोककुमार सिंह एवं श्री असीमकुमार मिश्र के भी हम आभारी हैं जिन्होंने प्रफ संशोधन आदि कार्यों में उन्हें सहयोग प्रदान किया है। इसके सत्वर एवं सुन्दर मुद्रण के लिए हम महावीर प्रेस को भी धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। भूपेन्द्रनाथ जैन, मन्त्री 'पार्श्वनाथ शोधपीठ, फरीदाबाद' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy