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________________ ८२० अणग्वाइज्जमाण (अनाश्रायमाण ) प २८१४३, ४४,६६,७० अणग्धिय ( अनधित) ज ३।९२,११६ अणतिवर ( अनतिवर ) ज ३०११६ वाह (अभ्रवाह) ज ३११०६ अभिगहिय ( अनभिगृहीत ) प १११०१।११ अभिगहिया (अनभिगृहीता ) प १११३७।२ अरिह (अनर्ह ) उ १।४०, ४३ अणव (ऋणवत् ) ज ७।१२२/३ सू १०२८४१३ अणवखमाण (अनवकाङ्क्षत् ) ज ३।२२४ उ० २।११ अणवगल्ल (अनवकल्प ) ज २|४|१ अणवति (अनवस्थित) सू ६ | १०८११०: १३।१७,१६।२२।१०,२७ अणवट्ठिय (अनवस्थित) प ३३ ३५, ३६ ज ७ ३१, ३३ सू ४१३ से ७ अणर्वाणद (अणपन्निकेंद्र ) प २०४६ trafore ( अपनिक) प २१४१, ४६ वणिकुमार राय ( अणपन्निककुमारराज ) प २२४६ अणवन्निय (अणपत्रिक) प २१४६, ४७।१ अणवरय ( अनवरत ) ज २२६४६३।१८५, २०६ अणसण ( अनशन ) उ २११२:३११४, ८३, १२०, १५०,१६१५२८,३६,४१,४३ अणरसाइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प २८/४३, ४४ ६६,७० अह ( अनघ ) सू २०७ अणह (दे०अक्षत) ज ३१८१ अणाई (अनादिक ) प १८११३,१०५ अणाज्जणाम ( अनादेयनामन् ) प २३|१२६ अागतद्धा (अनागताध्वन् ) २२६४, ३६।६३ अपाय ( अनागत ) ज २६०, ३१२६,३६,४७, ५६,१३३,१३८, १४५, ५१३, २२, ७१३६, ५२ अद्धा (अनागताध्वन् ) प ३६।६४ अणागयवयण (अनागतवचन ) प ११८६ Jain Education International अणगघा इज्ज माण- अणाहारग अणागार ( अनाकार ) प २६४।१२ : २६।११ ; ३०/२६ से २८ अणगारपरिस (अनाक रदर्शिन् ) प ३०।१५ से १८ २०,२२,२३ अणागारपासता ( अनाकारदर्शन, पश्यत्ता) प ३०११७ अणगारपाणया (अनाकार दर्शन, पश्यत्ता) प ३०११, ३, ५, ७,१२,१३ अणगारोवउत्त (अनाकारोपयुक्त ) प ३११०६, १७४; १३ १४; १८/६३; २६/१६ से २१ अणागारोवओग (अनाकारोपयोग ) प १३३८,२६११ ३, ५, ७, ८, १०, १३, १४ अणाघाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण ) प २८१४४,७० अणादाइज्माण (अनाद्रियमाण ) उ ३१६२ अणाढायमाण (अनाद्रियमाण ) उ ३५६,६१,७७, ११६ अणादिय (अनादृत) ज ४।१५०,१५६,१६०; ७।२१३ उ ३/२,१७१ अणाणत्त (अनानात्व ) प २१३,६,६,१२,१५ अणानुगामिय (अनानुगामिक) प ३३१३५ treya (अनानुपूर्व्य) ज ७।४७ अणाणवी (अनानुपूर्वी ) प ११३६८२८१८, ६४ अणादि (अनादि) सू १६; ११।१ अणादीय (अनादिक ) प १८।२५, ५५,५६,६४,६८ ७७,८३,८६,६०,१११,१२२, १२३, १२६, १२७ अणादेज्ज (अनादेय) ज २११३३ अणाज्जणाम ( अनादेयनामन् ) प २३३३८ अणाभोगवित्तिय (अनाभोग निर्वर्तित ) प १४६; २८१४,५०,३४१५ अणारिय (अनार्य ) ज २१४३ अणालोइय (अनालोचित ) उ३।८३ १२० ; ४१२४ अबुट्ठिबहुल (अनावृष्टिबहुल) ज १।१८ अणासाइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प २८१४०, ४१,४४,७० अनाहारग (अनाहारक ) प ३|१०७ २८ । १०८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003572
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages617
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size12 MB
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