SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ शब्दान्तर और रूपांतर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं; इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र संख्या ८ 33 "} " " 33 18 37 ܕܕ 33 " 13 12 " 12 2) " " " " ور 39 13 " 12 33 27 21 Jain Education International ८ € १० १२ १३ १५ १५ २४ ३७ ३७ ४० ४८ ५६ ५६ ६६ ७१ ७५ ७६ ७७ ११८ ११८ १२४ १२६ १३० १३५ १३७ १५४ मउड "धेयं गाइ कट्टाए पठ्ठे णाइय हंत अभिवंद आयंस मिउ पासाईए अतीव तिसोवाण' महालणं free विरचिय वायाणं ओणमंति मउ "टाणं मत्थए जएणं विजएणं बहुमो दार "कवेल्लुयाओ संकलाओ पगंठगा साए पहाए फ्एसे For Private & Personal Use Only मतुड "धेज्जं णादि ओकिट्टाए वट्ठे (खग); मट्ठ जातिय ( क,ख,ग,घ,च, छ) हंद अभिवंदते मातंस मउ पासातीए अतीत तिसोमाण महालए महि विरतिय वाइयाणं वाययाणं तोनमंति मिल "ताणं मत्थते जतेणं विजतेणं बहुगीओ बहुगीतो वार बार ( क,ख,ग,च) "कवेलुयातो संखलाओ (छ) (घ,च) (क, ख, ग ) (क, ख, ग, घ ) (क, ख, ग, च) (ख,ग,घ) (क, ख, ग, घ ) (क, ख, ग, च) ( क,ख,ग,छ) ( (घ) (क,घ) ( क्वचित् ) (क,च, छ) क, ख, ग, घ ) (क, ख, ग, घ ) ( क, ख, ग, घ ) ( च, छ ) ( क,ख,ग,च, छ; ( क, ख, ग, घ ) ( क्वचित् ) पकंठगा (घ, च) साते पहाते पतेसे (क, ख, ग, घ, च, छ) www.jainelibrary.org
SR No.003570
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages639
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy