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________________ की लम्बाई १०२ इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं-- ॥छ। अणु त्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्त छ।। श्री: श्रीः श्री: श्री: श्रीः श्री: छ छ: प्रति का अनुमानित समय १६०० है । ५. पण्हावागरणाई-- क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ---- पत्र संख्या २२८ से २५६ ख. पंचपाठी । हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तरार्ध । यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १०४४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा बीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति को जगह-- ग्रंथान १२५० शुभं भवत् कल्याणमस्तु ।। लिखा है । लेखन कर्ता तथा लिपि-संवत का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए। ग. त्रिपाठी (हस्तलिखित)-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र १११ हैं। प्रत्येक पत्र १०x४१ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ से ८ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वत्ति तथा बीच में कलात्मक बावडी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच बीच के कई पन्ने लप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथार १२५० ।छ। श्री ।। छ।।।। लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए। घ. मूलपाठ (सचित्र)-- पूनमचंद दुधोडिया, छापर द्वारा प्राप्त । इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं। बीच में वावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र हैं। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानत: १५७० के लगभग की होनी चाहिए ! अशुद्धि बहुल है ! च. मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । पत्र संख्या ८३ ।' क्व. यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003566
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages176
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
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