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________________ ८. तीसइम सत (पढमो उद्देसो) जहा सलेस्सा। नोसण्णोवउत्ता जहा अलेस्सा। सवेदगा जाव नपुंसगवेदगा जहा सलेस्सा। अवेदगा जहा अलेस्सा। सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्सा । अकसायी जहा अलेस्सा। सजोगी जाव कायजोगो जहा सलेस्सा। अजोगी जहा अलेस्सा । सागारोवउत्ता अणागारोव उत्ता जहा सलस्सा ।। ७. नेरइया णं भंते ! कि किरियावादी–पुच्छा । गोयमा! किरियावादी वि जाव वेणइयवादी वि॥ सलेस्सा णं भंते ! नेरइया कि किरियावादी? एवं चेव । एवं जाव काउलेस्सा। कण्हपक्खिया किरियाविवज्जिया। एवं एएणं कमेणं जच्चेव जोवाणं वत्तव्वया सच्चेव नेरइयाण वि जाव प्रणागारोव उत्ता, नवरं-जं अत्थि तं भाणियव्वं, सेसं न भष्मति । जहा ने रइया एवं जाव थणियकुमारा।। ६. पुढविकाइया णं भंते ! कि किरियावादी--पुच्छा। गोयमा! नो किरियावादी, प्रकिरियावादी वि.अण्णाणियवादी वि, नो वेणइयवादी। एवं पुढविकाइयाणं जं अत्थि तत्थ सव्वत्थ वि एयाइं दो मज्झिल्लाई समोसरणाइं जाव प्रणागारोव उत्ता वि ! एवं जाव चर्रािदयाणं । सव्वट्ठाणेसु एयाई चेव मज्झिल्लगाइं दो समोस रणाइं। सम्मत्त-नाणेहि वि पयाणि चेव मज्झिल्लगाइं दो समोसरणाई। पंचिदियतिरिक्खजोणिया जहा जोवा, नवरंजं अत्थि तं भाणियब्वं । मणुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेस । वाणमंतर जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा॥ १०. किरियावादी णं भंते ! जीबा कि नेरइयाउयं पकरेंति ? तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति ? मणुस्साउयं पकरेति ? देवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! नो ने रइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकाति, मणुस्सा उयं पि पकरेंति, देवाउयं पि पकरति ।। ११. जइ देवाउयं पकरेंति किं भवणवासिदेवाउयं पकरेंति जाव वे माणिय देवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! तो भवणवासिदेवाउयं पकरेंति, नो वाणमंतरदेवाउयं पकरेंति, नो जोइसियदेवा उयं पकरेंति, वेमाणियदेवाउयं पकरेंति ।। १२. अकिरियावादी णं भंते ! जीवा कि ने रइयाउयं पक रेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पुच्छा । गोयमा! नेरयाउयं पि पकरेंति जाव देवाउयं पि पकरेंति । एवं अण्णाणिय वादी वि वेणइयवादी वि।। १३. सलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी कि नेरइयाउयं पकरेंति-पूच्छा। गोयमा! नो नेरइयाउयं, एवं जहेव जीवा तहेव सलेस्सा वि च उहि वि समोसरणेहि भाणियव्वा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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