SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 530 ] [ ज्ञाताधर्मकथा आभियोगिक देवों को प्राज्ञा दी थी, उसी प्रकार काली देवी ने भी प्राज्ञा दी यावत् 'दिव्य और श्रेष्ठ देवताओं के गमन के योग्य यान-विमान बनाकर तैयार करो, यावत् मेरी प्राज्ञा वापिस सौंपों।' आभियोगिक देवों ने आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा लौटा दी। यहाँ विशेषता यही है कि हजार योजन विस्तार वाला विमान बनाया (जबकि सूर्याभ देव के लिए लाख योजन का विमान बनाया गया था)। शेष वर्णन सूर्याभ के वर्णन के समान ही समझना चाहिए। सूर्याभ की तरह ही भगवान् के पास जाकर अपना नाम-गोत्र कहा, उसी प्रकार नाटक दिखलाया। फिर वन्दन-नमस्कार करके काली देवी वापिस चली गई। ११-भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी–कालीए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी कहिं गया ?' कूडागारसाला-दिळंतो। 'अहो भगवन् !' इस प्रकार संबोधन करके भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'भगवन् ! काली देवी की वह दिव्य ऋद्धि कहाँ चली गई ?' भगवान् ने उत्तर में कूटाकारशाला का दृष्टान्त दिया।' काली देवी का पूर्वभव १२–'अहो णं भंते ! काली देवी महिट्टिया। कालीए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी किण्णा लद्धा? किण्णा पत्ता ? किण्णा अभिसमग्णागया ?' एवं जहा सूरियाभस्स जाब एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे आमलकप्पा णाम णयरी होत्था / वण्णओ। अंबसालवणे चेइए / जियसत्तू राया। 'अहो भगवन् ! काली देवी महती ऋद्धि वाली है / भगवन् ! काली देवी को वह दिव्य देवधि पूर्वभव में क्या करने से मिली? देवभव में कैसे प्राप्त हुई ? और किस प्रकार उसके सामने आई, अर्थात् उपभोग में आने योग्य हुई ?' / यहाँ भी सूर्याभ देव के समान ही कथन समझना चाहिए। भगवान् ने कहा- 'हे गौतम ! उस काल और उस समय में, इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, पामलकल्पा नामक नगरी थी। उसका वर्णन करना चाहिए। उस नगरी के बाहर ईशान दिशा में अाम्रशालवन नामक चैत्य (वन) था / उस नगरी में जितशत्रु नामक राजा था। १३-तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले णामं गाहावई होत्था, अड्ढे जाव अपरिभूए / तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी णामं भारिया होत्या, सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा / तस्स णं कालगस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली णामं दारिया होत्था, वड्डा वड्डकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयस्थणी णिविन्नवरा वरपरिवज्जिया वि होत्था। उस आमलकल्पा नगरी में काल नामक गाथापति (गृहस्थ) रहता था। वह धनाढ्य था और किसी से पराभूत होने वाला नहीं था। काल नामक गाथापति की पत्नी का नाम कालश्री था / वह सुकुमार हाथ पैर प्रादि अवयवों वाली यावत् मनोहर रूप वाली थी / उस काल गाथापति की पुत्री और कालश्री भार्या को आत्मजा काली नामक बालिका थी / वह (उम्र से) बड़ी थी और बड़ी 1. दृष्टान्त का विवरण पहले आ चुका है, देखिये पृष्ठ 339. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy