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________________ 528 ] [ ज्ञाताधर्मकथा जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णते ? जम्बूस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-भगवन् श्रमण भगवान् यावत् सिद्धिप्राप्त ने यदि धर्मकथा श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं, तो भगवन् ! प्रथम वर्ग का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है ? आर्य सुधर्मा उत्तर देते हैं- जम्बू ! श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं / वे इस प्रकार हैं-(१) काली (2) राजी (3) रजनी (4) विद्युत् और (5) मेघा / जम्बू ने पुनः प्रश्न किया-भगवन् ! श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त महावीर भगवान ने यदि प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं तो हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है ? ६-'एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, सेणिए राया, चेलणा देवी / सामी समोसरिए / परिसा निग्गया जाव परिसा पज्जुवासइ / श्री सुधर्मास्वामी उत्तर देते हैं-जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था, श्रेणिक राजा था और चेलना रानी थी। उस समय स्वामी (भगवान् महावीर) का पदार्पण हुआ। वन्दना करने के लिए परिषद् निकली, यावत् परिषद् भगवान् को पर्युपासना करने लगी। काली देवी की कथा ७–तेणं कालेणं तेणं समएणं काली नामं देवी चमरचंचाए रायहाणीए कालडिसगभवणे कालंसि सीहासणंसि, चहि सामाणियसाहस्सीहि, चहि महयरियाहि, सपरिवाराहि, तिहि परिसाहि सहि अणिएहि, सहि अणियाहिवहि, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि, अण्णेहि बहुएहि य कालडिसयभवणवासोहि असुरकुमारहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिबुडा महयाहय जाव विहरइ। उस काल और उस समय में, काली नामक देवी चमरचंचा राजधानी में, कालावतंसक भवन में, काल नामक सिंहासन पर आसीन थी। चार हजार सामानिक देवियों, चार महत्तरिका देवियों, परिवार सहित तीनों परिषदों, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा अन्यान्य कालावतंसक भवन के निवासी असुरकुमार देवों और देवियों से परिवृत होकर जोर से बजने वाले वादित्र नृत्य गीत आदि से मनोरंजन करती हुई विचर रही थी। ८-इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी आभोएमाणी पासइ / तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संयमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुचित्तमाणंदिया पीइमणा हयहियया सोहासणाओ अन्भुठेइ, अन्भुद्वित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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