SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 254 ] [ ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् चित्र को देखकर हर्ष उत्पन्न होने के कारण अदीनशत्रु राजा ने दूत को बुलाया। बुला कर इस प्रकार कहा-(अपने लिए मल्ली कुमारी की मँगनी करने के लिए दूत भेजा) इत्यादि सब वृत्तान्त पूर्ववत् कहना चाहिए / यावत् दूत मिथिला जाने के लिए रवाना हो गया। राजा जितशत्रु 109- तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जणवए, कंपिल्ले पुरे नयरे होत्था / तत्थ णं जियसत्तू णामं राया होत्था पंचालाहिवई / तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देविसहस्सं ओरोहे होत्था। उस काल और उस समय में पंचाल नामक जनपद में काम्पिल्यपुर नामक नगर था / वहाँ जितशत्र नामक राजा था, वही पंचाल देश का अधिपति था / उस जितशत्र राजा के अन्तःपुर में एक हजार रानियाँ थीं। ११०-तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा नाम परिव्वाइया रिउव्वेय जाव [यजुव्वेय-सामवेय. अहव्वणवेय-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णएसु सुपरिणिट्ठिया] यावि होत्था। तए णं साचोक्खा परिवाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्यवाहपभिईणं पुरओ दाणधम्म च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ / मिथिला नगरी में चोक्खा (चोक्षा) नामक परिव्राजिका रहती थी। वह चोक्खा परिवाजिका मिथिला नगरी में बहुत-से राजा, ईश्वर (ऐश्वर्यशाली धनाढ्य या युवराज) यावत् सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म, और तीर्थस्नान का कथन करती, प्रज्ञापना करती, प्ररूपण करती और उपदेश करती हुई रहती थी। १११-तएँ णं सा चोक्खा परिव्वाइया अन्नया कयाई तिदंडं च कुडियं च जाव' धाउरत्ताओ य गिण्हइ, गिरिहत्ता परिव्वाइगावसहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पविरलपरिवाइया सद्धि संपरिवडा मिहिलं रायहाणि मज्झंमज्झेणं जेणेव कुंभगस्स रणो भवणे, जेणेब कण्णंतेउरे, जेणेव मल्ली विदेहवररायकन्ना, तेणेव उवागच्छई। उवागच्छित्ता उदयपरिफासियाए, दभोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयति, निसीइत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्मं च जाव विहरइ / तत्पश्चात् एक बार किसी समय वह चोक्खा परिवाजिका त्रिदण्ड, कुडिका यावत् धातु (गेरू) से रंगे वस्त्र लेकर परिवाजिकाओं के मठ से बाहर निकली / निकल कर थोड़ी परित्राजिकाओं से घिरी हुई मिथिला राजधानी के मध्य में होकर जहाँ कुम्भ राजा का भवन था, जहाँ कन्याओं का अन्तःपुर था और जहाँ विदेह की उत्तम राजकन्या मल्ली थी, वहाँ पाई। आकर भूमि पर पानी छिड़का, उस पर डाभ बिछाया और उस पर आसन रख कर बैठी / बैठ कर विदेहवर राजकन्या मल्ली के सामने दानधर्म, शौचधर्म, तीर्थस्नान का उपदेश देती हुई विचरने लगी--उपदेश देने लगी। 1. पंचम प्र., 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy