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________________ आठवां अध्ययन : मल्ली] . [231 मगंडजणियहासे दूयं सदावेइ, सद्दाविता एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया ! मिहिलं रायहाणि, तत्थ णं कुम्भगस्स रणो धूयं पउमावईए देवीए अत्तयं मल्लि विदेहवररायकाणगं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि णं सा सयं रज्जसु का / तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि अमात्य से यह अर्थ (बात) सुनकर और हृदय में धारण करके और श्रीदामकाण्ड की बात से हर्षित (प्रमुदित-अनुरक्त) होकर दूत को बुलाया / बुलाकर इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय ! तुम मिथिला राजधानी जानो। वहाँ कुम्भ राजा की पुत्री, पद्मावती देवी का पात्मजा और विदेह को प्रधान राजकुमारी मल्ली की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो। फिर भले ही उसके लिए सारा राज्य शुल्क --मूल्य रूप में देना पड़े। विवेचन--इस पाठ से आभास होता है कि प्राचीन काल में कन्या ग्रहण करने के लिए शुल्क देना पड़ता था / अन्य स्थलों में भी अनेक बार ऐसा ही पाठ पाता है / यह कन्याविक्रय का ही एक रूप था जो हमारे समाज में कुछ वर्षों पूर्व तक प्रचलित था / अब पलड़ा पलट गया है और कन्याविक्रय के बदले वर-विक्रय की धणित प्रथा चल पड़ी है। यों यह एक सामाजिक प्रथा है किन्तु धार्मिक जीवन पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। साधारण प्राय से भी मनुष्य अपनी उदरपूर्ति कर सकता है और तन ढंक सकता है। उसके लिए अनीति और अधर्म से अर्थोपार्जन की आवश्यकता नहीं, किन्तु वर खरीदने अर्थात् विवश होकर दहेज देने के लिए अनीति और अधर्म का आचरण करना पड़ता है। इस प्रकार इस कुप्रथा के कारण अनीति और अधर्म की समाज में वृद्धि होती है। ५१–तए णं से दूए पडिबुद्धिणा रण्णा एवं वुते समाणे हद्वतुठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं पडिकम्पावेइ, पडिकप्पावित्ता दुरूढे जाव हय-गय-[ रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिबुडे ] महयाभडचडगरेणं साएयाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजणवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए / तत्पश्चात् उस दूत ने प्रतिवुद्धि राजा के इस प्रकार कहने पर हर्षित और संतुष्ट होकर उसकी आज्ञा अंगीकार की। अंगीकार करके जहाँ अपना घर था और जहाँ चार घंटों वाला अश्वरथ था, वहाँ पाया। पाकर (ग्रागे, पीछे और अगल-बगल में) चार घंटों वाले अश्व-रथ को तैयार कराया। तैयार करवाकर उस पर पारूढ हना। यावत घोडों, हाथियों (रथों, उत्तम योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना के साथ) और बहुत से सुभटों के समूह के साथ साकेत नगर से निकला। निकल कर जहाँ विदेह जनपद था और जहाँ मिथिला राजधानी थी, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया-चल दिया। विवेचन-श्रीदामकाण्ड की चर्चा में से मल्ली कुमारी के अनुपम सौन्दर्य की बात निकली। राजा को मल्ली कुमारी के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ। इस अनुराग का तात्कालिक निमित्त श्रीदामकाण्ड हो अथवा मल्ली के सौन्दर्य का वर्णन, किन्तु मूल और अन्तरंग कारण पूर्वभव की प्रीति के संस्कार हो समझना चाहिए। मल्ली कुमारी जब महाबल के पूर्वभव में थी तब उनके छह बाल्यमित्रों में इस भव का यह प्रतिबुद्धि राजा भी एक था। मल्ली कुमारी घटित होने वाली इन सब घटनाओं को पहले से ही अपने अतिशय ज्ञान से For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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