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________________ 230 ] [ ज्ञाताधर्मकथा राईसर जाव' गिहाई अणुपविससि, तं अस्थि णं तुमे कहिचि एरिसए सिरिदामगंडे दिट्टपुष्वे, जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे ? तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा उस श्रीदामकाण्ड को बहुत देर तक देखता रहा / देख कर उस श्रीदामकाण्ड के विषय में उसे आश्चर्य उत्पन्न हुया. उसे देखकर चकित रह गया / उसने सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा _ हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे दौत्य कार्य से दूत के रूप में बहुतेरे ग्रामों, प्राकरों, नगरों यावत् सनिवेशों आदि में घूमते हो और बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों [तलवर, माडविक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति आदि के गृहों में प्रवेश करते हो; तो क्या तुमने ऐसा सुन्दर श्रीदामकाण्ड पहले कहीं देखा है, जैसा पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड है ? 48- तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धि रायं एवं बयासी-एवं खलु सामी ! अहं अन्नया कयाई तुम्भं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणि गए, तत्थ णं मए कुभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहवररायकन्नाए संवच्छरपडिलेहणगंसि दिवे सिरिदामगंडे दिट्टपुटवे / तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घइ / तब सुबुद्धि अमात्य ने प्रतिबुद्धि राजा से कहा-स्वामिन् ! मैं एक बार किसी समय आपके दौत्यकार्य से मिथिला राजधानी गया था। वहां मैंने कुभ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा, विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली के संवत्सर-प्रतिलेखन उत्सव (जन्मगांठ) के महोत्सव के समय दिव्य श्रीदामकाण्ड देखा था / उस श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड शतसहस्र -लाखवां अंश भी नहीं पाता-लाख- अंश की भी बराबरी नहीं कर सकता। ___ 49 तए णं पडिबुद्धी राया सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी–केरिसिया णं देवाणुप्पिया ! मल्ली विदेहवररायकन्ना जस्स णं संवच्छरपडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घइ ? ___ तए णं सुबुद्धी अमच्चे पडिबुद्धि इवखागुरायं एवं वयासी–एवं खलु सामी ! मल्ली विदेहवररायकन्नगा सपइट्ठियकुम्मुन्नयचारुचरणा, वन्नओ। तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि मंत्री से इस प्रकार कहा–देवानुप्रिय ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली कैसी है ? जिसकी जन्मगांठ के उत्सव में बनाये गये श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड लाखवां अंश भी नहीं पाता? ___ तव सुबुद्धि मंत्री ने इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि से कहा-स्वामिन् ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली सुप्रतिष्ठित और कछुए के समान उन्नत एवं सुन्दर चरण वाली है, इत्यादि वर्णन जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि के अनुसार जान लेना चाहिए। ५०–तए णं पडिबुद्धी राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयमढें सोच्चा णिसम्म सिरिदा१. पञ्जम अ.५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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