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________________ आठवां अध्ययन : मल्ली] [215 ८--तस्स णं महब्बलस्स रन्नो इमे छप्पिय बालवयंसगा रायाणो होत्था, तंजहा-(१) अयले (2) धरणे (3) पूरणे (4) बसू (5) वेसमणे (6) अभिचंदे, सहजाया सहड्डियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्ता अण्णमग्णमणुव्वयया अण्णमण्णच्छंदाणुवत्तया अण्ण. मण्णहियइच्छियकारया अण्णमण्णेसु रज्जेसु किच्चाई करणिज्जाई पच्चणुभवमाणा विहरति / तए णं तेसि रायाणं अण्णया कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सण्णिविदाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समप्पज्जित्था--जण्ण देवाणप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्हेहि एगयओ समेच्चा णित्थरियध्वे ति कटु अन्नमन्नस्सेयमझें पडिसुणेति / सुहंसुहेणं विहरति / उस महाबल राजा के यह छह राजा बालमित्र थे। वे इस प्रकार--(१) अचल (2) धरण (3) पूरण (4) वसु (5) वैश्रमण (6) अभिचन्द्र / वे साथ ही जन्मे थे, साथ ही वृद्धि को प्राप्त हुए थे, साथ ही धूल में खेले थे, साथ ही विवाहित हुए थे, एक दूसरे पर अनुराग रखते थे, एक-दूसरे का अनुसरण करते थे, एक-दूसरे के अभिप्राय का आदर करते थे, एक-दूसरे के हृदय की अभिलाषा के अनुसार कार्य करते थे, एक-दूसरे के राज्यों में काम-काज करते हुए रह रहे थे। एक बार किसी समय वे सब राजा इकट्ठे हुए, एक जगह मिले, एक स्थान पर आसीन हुए। तब उनमें इस प्रकार का वार्तालाप हमा-'देवानप्रियो ! जब कभी हमारे लिए सूख का, दुःख प्रव्रज्या-दीक्षा का अथवा विदेशगमन का प्रसंग उपस्थित हो तो हमें सभी अवसरों पर साथ ही रहना चाहिए। साथ ही आत्मा का निस्तार करना-आत्मा को संसार-सागर से तारना चाहिए, ऐसा निर्णय करके परस्पर में इस अर्थ (बात) को अंगीकार किया था / वे सुखपूर्वक रह रहे थे। महाबल को दीक्षा ९--तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा थेरा जेणेव इंदकुभे उज्जाणे तेणेव समोसढा, परिसा निग्गया, महब्बलो वि राया निग्गओ / धम्मो कहिओ। महब्बलेणं धम्म सोच्चा-जं नवरं देवाणुप्पिया ! छप्पिय बालवयंसगे आपुच्छामि, बलभदं च कुमारं रज्जे ठावेमि, जाव छप्पिय बालवयंसए आपुच्छइ। तए णं ते छप्पिय बालवयंसए महब्बलं रायं एवं वयासो-'जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे पव्वयह, अम्हं के अन्ने आहारे वा ? जाव आलंबे वा ? अम्हे वि य णं पव्वयामो। तए णं से महब्बले राया छप्पिय बालवयंसए एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे मए सद्धि (जाव) पन्वयह, तओ णं तुम्भे गच्छह, जेट्टपुत्तं सएहि सएहिं रज्जेहिं ठावेह, पुरिससहस्सवाहणीओ सीयाओ दुरुढा समाणा पाउब्भवह / तए णं ते छप्पिय बालवयंसए जाव पाउब्भवंति / उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर जहाँ इन्द्रकुम्भ उद्यान था, वहाँ पधारे / परिषद् वंदना करने के लिए निकली। महाबल राजा भी निकला। स्थविर महाराज ने धर्म कहाधर्मोपदेश दिया। महाबल राजा को धर्म श्रवण करके वैराग्य उत्पन्न हुआ / विशेष यह कि राजा ने कहा-'हे देवानुप्रिय ! मैं अपने छहों बालमित्रों से पूछ लेता हूँ और बलभद्र कुमार को राज्य पर स्थापित कर देता हूँ, फिर दीक्षा अंगीकार करूंगा।' यादत् इस प्रकार कहकर उसने छहों बालमित्रों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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