________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के बाद अरुणवर द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्त से अरुणोदय समुद्र में 42,000 योजन अवगाहन करने (जाने) पर वहाँ के ऊपरो जलान्त से एक प्रदेश वाली श्रेणी पाती है, यहीं से तमस्काय समुत्थित (उठा-प्रादुर्भूत हुआ) है। वहाँ से 1721 योजन ऊँचा जाने के बाद तिरछा विस्तृत से विस्तृत होता हुअा, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र, इन चार देवलोकों (कल्पों) को प्रावृत (आच्छादित) करके उनसे भी ऊपर पंचम ब्रह्मलोककल्प के रिष्टविमान नामक प्रस्तट (पाथड़े) तक पहुँचा है और यहीं तमस्काय सन्निष्ठित (समाप्त या संस्थित) हुपा है / 3. तमुक्काए णं भते ! किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! अहे मल्लगमूलसंठिते, उप्पि कुक्कुडगपंजरगसंठिए पणते / [3 प्र.] भगवन् ! तमस्काय का संस्थान (आकार) किस प्रकार का कहा गया है ? [3 उ. गौतम! तमस्काय नीचे तो मल्लक (शराव या सिकोरे) के मूल के आकार का है और ऊपर कुक्कुंटपंजरक अर्थात् मुर्गे के पिंजरे के आकार का कहा गया है। 4. तमुक्काए णं भते केवतियं विक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा! दुबिहे पण्णते, तं जहा-संखेज्जवित्थडे य असंखेज्जवित्थडे य / तस्य णं जे से संखेज्जवित्थडे से णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं 50 / तस्थ गंजे से असंखिज्जवित्यडे से असंक्खेज्जाई जोंयणसहस्साई विवखंभेणं, असंखेज्जाई जोयण. सहस्साई परिक्खेवेणं / [4 प्र.] ! भगवन् ! तमस्काय का विष्कम्भ (विस्तार) और परिक्षेप (घेरा) कितना कहा गया है ? [4 उ.] गौतम ! तमस्काय दो प्रकार का कहा गया है--एक तो संख्येयविस्तृत और दूसरा असंख्येयविस्तृत / इनमें से जो संख्येय विस्तुत है, उसका विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन है। जो तमस्काय असंख्येय विस्तृत है, उसका विष्कम्भ असंख्येय हजार योजन है और परिक्षेप भी असंख्येय हजार योजन है। 5. तमुक्काए गंभ ते ! केमहालए प०? गोधमा ! अयं णं जंबद्दोवे 2 जाव' परिक्खेवेणं पण्णत्ते / देवे णं महिड्ढोए जाबर 'इणामेव इणामेव' ति कटु केवलकप्पं जबद्दोवं दो तिहि अच्छरानिवाएहि तिसत्तखतो अणपरियट्टित्ताणं 1. जात्र पद यहाँ इस पाठ का गुचक्र है--"अयं जंबुद्दोवे गामं दोवे दीव-समुद्दाणं अतिरिए सम्बखुड्डाए बट्ट तेल्ला पूयसंठाणसंठिते, व रहचक्कवालसंठाणसंठिते, व पुक्खरकणियासंठाणसंठिते, बट्ट पडिपुण्णचंद संठाणसंठिते एक्कं जोषणसयसहस्सं आयामविवखंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साई दोणि य सत्तावीसे जोयणसते तिण्णि य कोसे अदावीसं च धणसयं तेरस अंगुलाई अद्ध गुलकं च किचिविसे साहियं परिक्खेवेणं"। -जीवाभिगम प्रतिपत्ति 3, जम्बूद्वीपप्रमाण कथन प. 1775. 2. 'जाव' पद यहाँ--'महज्जुईए महाबले महाजसे महेसक्खे महाणुभागे' इन पदों का सूचक है। 3. अच्छरानिवाएहि.---चुटकी बजाने जितने समय में / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org