SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1683
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 418] [ग्याख्याप्राप्तिसूत्र विवेचन–प्रस्तुत सूत्र (24, 1-2) में शक्रेन्द्र द्वारा किसी के मस्तक को छिन्न-भिन्न करके कमण्डलु में डाल देने की विशिष्ट शक्ति और उसकी प्रक्रिया का निरूपण किया गया है।' जम्भक देवों का स्वरूप, भेद, स्थिति 25. [1] अस्थि णं भंते ! जंभया देवा, जंभया देवा ? हंता, अस्थि / [25-1 प्र.] भगवन् ! क्या [स्वच्छन्दाचारी की तरह चेष्टा करने वाले जृम्भक देव होते हैं ? [25-1 उ.] हाँ, गौतम ! होते हैं। [2] से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ 'जंभया देवा, जंभया देवा' ? गोयमा ! जंभगा णं देवा निच्चं पमुदितपक्कोलिया कंदप्परतिमोहणसीला, जे गं ते देवे कुद्ध पासेज्जा से णं महंतं अयसं पाउणेज्जा, जे गं ते देवे तु8 पासेज्जा से णं महंतं जसं पाउणेज्जा, से तेणढणं गोयमा ! 'जंभगा देवा, जमगा देवा' / [25-2 प्र.] भगवन् ! वे जृम्भक देव किस कारण कहलाते हैं ? [25-2 उ.] गौतम ! ज़म्भक देव, सदा प्रमोदी, अतीव क्रीड़ाशील, कन्दर्प में रत और मोहन (मैथुनसेवन) शील होते हैं। जो व्यक्ति उन देवों को क्रुद्ध हुए देखता है, वह महान् अपयश प्राप्त करता है और जो उन देवों को तुष्ट (प्रसन्न) हुए देखता है, वह महान् यश को प्राप्त करता है / इस कारण, हे गौतम ! वे जम्भक देव कहलाते हैं। 26. कतिविहा णं भंते ! जंभगा देवा पन्नत्ता? गोयमा ! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा-अन्नजंभगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणजंभगा, सयणजंभगा, पुष्फजंभगा, फलजंभगा, पुप्फफलजंभगा, विज्जाजंभगा, अवियत्तिजभगा। [26 प्र.] भगवन् ! जम्भक देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [26 उ.] गौतम ! वे दस प्रकार के कहे गए हैं। यथा-(१) अन्न-जम्भक, (2) पान-जृम्भक, (3) वस्त्र-ज़म्भक, (4) लयन-जम्भक, (5) शयन-जृम्भक, (6) पृष्प-जृम्भक, (7) फल-ज़म्भक, (8) पुष्प-फल-जृम्भक, (6) विद्या-जृम्भक और (10) अव्यक्त-जम्भक / 27. जंभगा गं भंते ! देवा कहि वसहि उति ? गोयमा ! सव्वेसु चेव दोहवेयड्ड सु चित्तविचित्तजमगपव्वएमु कंचणपव्वएसु य, एत्थ णं जंभगा देवा वसहि उति। [27 प्र.] भगवन् ! जम्भक देव कहाँ निवास करते हैं ? [27 उ.] गौतम ! जम्भक देव सभी दीर्घ (लम्बे-लम्बे) वैताढ्य पर्वतों में, चित्र-विचित्र यमक पर्वतों में तथा कांचन पर्वतों में निवास करते हैं। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 654 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy