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________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 8] [417 देवों के 9 भेद हैं—(१) सारस्वत, (2) आदित्य, (3) वह्नि, (4) वरुण (या अरुण) (5) गर्दतोय, (6) तुषित, (7) अव्याबाध, (8) अग्न्यर्च (मरुत) और (6) रिष्ट / इनमें से वे अव्याबाध देव हैं।' कठिनशब्दार्थ-अच्छिपत्तंसि–नेत्र की पलक पर / उवदंसेत्तए पभू-दिखलाने में समर्थ है / प्राबाहं-किचित् बाधा, वाबाहं विशेष बाधा / छविच्छेयं-शरीर छेदन करने में / एसुहुयं-इस प्रकार का सूक्ष्म / सिर काट कर कमण्डलु में डालने की शकेन्द्र को वैक्रियशक्ति 24. [1] पभू णं भंते ! सक्के देविदे देवराया पुरिसस्स सोसं सापाणिणा असिणा छिदित्ता कमंडलुम्मि पक्खिवित्तए ? हंता, पभू / [24-1 प्र.] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ में ग्रहण को हुई तलवार से, किसी पुरुष का मस्तक काट कर कमण्डलु में डालने में समर्थ है ? |24-1 उ.] हाँ, गौतम ! वह समर्थ है / [2] से कहमिदाणि पकरेइ ? गोयमा ! छिदिया छिदिया व णं पविखवेज्जा, भिदिया मिदिया व गं पक्खिवेज्जा, कुट्टिया कुट्टिया व णं पक्खिवेज्जा, चुणिया चणिया व णं पक्खिवेज्जा, ततो पच्छा खिप्पामेव पडिसंघातेज्जा, नो चेव णं तस्स पुरिसस्स किचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएज्जा, छविच्छेयं पुण करेति, एसुहुमं च कंपविखवेज्जा। [24-2 प्र. भगवन् ! वह (मस्तक को काट कर कमण्डलु में) किस प्रकार डालता है ? [24-2 प्र. गौतम ! शकेन्द्र उस पुरुष के मस्तक को छिन्न-छिन्न (खण्ड-खण्ड) करके (कमण्डलु में) डालता है। या भिन्न-भिन्न (वस्त्र को तरह चीर कर टुकड़े-टुकड़े) करके डालता है। अथवा वह कूट-कूट(ऊखल में तिलों की तरह कूट) कर डालता है। या (शिला पर लोढ़ी से पीसकर) चूर्ण कर करके डालता है। तत्पश्चात् शीघ्र ही वह मस्तक के उन खण्डित अवयवों को एकत्रित करता है और पुनः मस्तक बना देता है / इस प्रक्रिया में उक्त पुरुष के मस्तक का छेदन करते हुए भी वह (शकेन्द्र) उस पुरुष को थोड़ी या अधिक पीड़ा नहीं पहुँचाता / इस प्रकार सूक्ष्मतापूर्वक मस्तक काट कर वह उसे कमण्डलु में डालता है। 1. (क) व्यावाधन्ते--पर पीडयन्तीति व्याबाधास्तनिषेधादच्याबाधाः, ते च लोकान्तिकदेवमध्यगता द्रष्टव्याः / यदाह सारस्सयमाइच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य / तुसिया अब्बाबाहा अग्मिच्चा देव रिट्ठा य / -भ. अ. द. पत्र 654 (ख) सारस्वतादिन्य-वह यरुण-गर्दतोयतूषिताऽज्याबाध-मरुतोऽरिष्टाश्च। --तत्त्वार्थ. अ. 4 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 654 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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