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________________ 237 पंचम अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 554 भांगिक = इसके दो अर्थ हैं--(१) अलसीसे निष्पन्नवस्त्र, (2) वंशकरील के मध्य भाग को कूट कर बनाया जानेवाला वस्त्र। सानज - पटसन (पाट), लोध की छाल, तिरोडवृक्ष की छाल के तन्तु से बना हुआ वस्त्र / पोत्रक = ताड़ आदि के पत्रों के समूह से निष्पन्न वस्त्र / खोमिय = कपास (रूई) से बना हुआ वस्त्र। तूलकडं = आक आदि को रूई से बना हुआ वस्त्र / वर्तमान में साधु-साध्वीगण प्रायः सूती और ऊनीवस्त्र ही धारण करते हैं। किन्तु तरुण साधु के लिए एक ही वस्त्र धारण करने की परम्परा आज तो समाप्तप्रायः है। इस सम्बन्ध में वृत्तिकार स्पष्टीकरण करते हैं कि 'दृढ़बाली तरुण साधु आचार्यादि के लिए जो अन्य वस्त्र रखता है, उसका स्वयं उपयोग नहीं करता। जो साधु बालक है, वृद्ध, या दुर्बल है, या हीन-संहनन है वह यथासमाधि दो, तीन आदि वस्त्र भी धारण कर सकता है। जिनकल्पिक अपनी प्रतिज्ञानसार वस्त्र धारण करता है,वहां अपवाद नहीं है। __ साध्वी के लिए चार चादर धारण करने का विधान किया है, उनमें से दो हाथवाली चादर उपाश्रय में ओढे, तोन हाथवाली भिक्षा काल में तथा स्थंडिलभूमि के लिए जाते समय ओढे, तथा चार हाथवाली चादर धर्म-सभा आदि में बैठते समय ओढे / 'जुगवं' का अर्थ प्राकृत कोष के अनुसार है--समय के उपद्रव मे रहित / ' बौद्ध श्रमणों के लिए 6 प्रकार के वस्त्र विहित है—कौशेय, कंबल, कार्यासिक, क्षौम (अलसी की छाल से बना) शाणज (सन से बना) भंगज (भंग की छाल से बना हुआ) वस्त्र / / ब्राह्मणों (द्विजों) के लिए निम्नोक्त 6 प्रकार के वस्त्र मनुस्मृति में अनुमत है-कृष्ण, मृगचर्म, रुरु (मृग विशेष) चर्म, एवं छाग-चर्म, सन का वस्त्र, क्षुपा (अलसी) एवं मेष (भेड़) के लोम से बना वस्त्र। वस्त्र-ग्रहण की क्षेत्र-सीमा 554. से भिक्खू वा 2 परं अद्धजोयणमेराए वत्थपडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 1. मूल सर्वास्तिवाद के बिनयवस्तु पृ० 62 में भी 'भांगेय' वस्त्र का उल्लेख है। यह वस्त्र भांग वृक्ष के तंतुओं से बनाया जाता था। अभी भी कुमायू (उ० प्र०) में इसका प्रचार है, वहाँ 'भागेला' नाम से जानते हैं। -डा. मोतीचंद, भारती विद्या० 121141 2. (क) आचारांग चूणि मू. पाठ-टिप्पणी पृ० 210 (ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक 362 (ग) 'ठाणं'---विवेचन (मनि नथमलजी) स्था०५ 10 160 पृ० 642, 683 (घ) वृहत्कल्पभाष्य गा० 3661, 3662, 3663 वृत्ति (3) निशीथ 6/10,12 को चूर्णि में (च) तिरोडपट्ट की व्याख्या [लोध वृक्ष की छाल से बना] आचारांग टीका पत्र 382 3. पाइय-सहमहगणवो पृ० 356 4. विनयपिटक महाधम 8/0/5 पृ. 275 राहुलसांकत्यायन) 5. मनुस्मति अ० 2 प्रलो० 40-41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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