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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] (५३९ [१५८५-१ प्र.] भगवन् ! (एक जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुआ (कायिकी आदि पांच क्रियाओं में से) कितनी क्रियाओं वाला होता है ? [उ.] गौतम ! (वह) कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है। [२] एवं णेरइए जाव वेमाणिए। [१५८५-२] इसी प्रकार एक नैरयिक से लेकर (एक) वैमानिक (तक के आलापक कहने चाहिए।) १५८६.[१] जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणा कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि। [१५८६-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते हुए, कितनी क्रियाओं वाले होते [उ.] गौतम ! (वे) कदाचित् तीन क्रियाओं वाले, कदाचित् चार क्रियाओं वाले और कदाचित् पांच क्रियाओं वाले भी होते हैं। [२] एवं णेरइया निरंतरं जाव वेमाणिया। [१५८६-२] इस प्रकार (सामान्य अनेक जीवों के आलापक के समान) नैरयिकों से (लेकर) लगातार वैमानिकों तक (के आलापक कहने चाहिए।) १५८७. [१] एवं दरिसणावरणिजं वेयणिज्जं मोहणिजं आउयं णामं गोयं अंतराइयं च अट्ठविहकम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। ___ [१५८७-१] इस प्रकार (ज्ञानावरणीय कर्म के समान) दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तरायिक, इन आठों प्रकार की कर्मप्रकृतियों को (बांधता हुआ एक जीव या एक नैरयिक से यावत् वैमानिक, अथवा बांधते हुए अनेक जीवों या अनेक नैरयिकों से यावत् वैमानिकों को लगने वाली क्रियाओं के आलापक कहने चाहिए।) [२] एगत्त-पोहत्तिया सोलस दंडगा। [१५८७-२] एकत्व और पृथक्त्व के (आश्रयी कुल) सोलह दण्डक होते हैं। विवेचन - अष्टविध कर्मबन्धाश्रित क्रियाप्ररूपणा - प्रस्तुत त्रिसूत्री (सू. १५८५ से १५८७ तक) में जीवों के द्वारा प्राणातिपातादि के कारण ज्ञानावरणीयादि कर्म बांधते हुए क्रियाओं के लगने की संख्या की प्ररूपणा की गई है। प्रस्तुत प्रश्न का आशय - इसी पद में पहले कहा गया था कि जीव प्राणातिपात आदि पापस्थानों के
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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