SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 552
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाईसवाँ क्रियापद ] [ ५३१ निर्वर्त्तनाधिकरणिकी- खङ्ग, भाला आदि हिंसक शस्त्रों का मूल से निर्माण करना निर्वर्त्तना है । यह संसार को वृद्धिरूप होने से निर्वर्त्तनाधिकरणिकी कहलाती है। प्राणातिपातक्रिया- किसी प्रकार से आत्महत्या करना, अथवा प्रद्वेषादिवश दूसरों को या दोनों को प्राण से रहित करना, यह त्रिविध प्राणातिपातक्रिया है । पारितापनिकी क्रिया : शंका-समाधान - जो तप या अन्य अनुष्ठान अशक्य हो, जिस तप के करने मन में दुर्ध्यान पैदा होता हो, इन्द्रियों की हानि हो, मन-वचन-काया के योग उत्पथ पर चलें या एकदम क्षीण हो जाएँ, वह तपश्चरण या कायकष्ट पारितापनिकी क्रिया में है । परन्तु जिससे दुर्ध्यान न हो, जिसका परिणाम आत्महितकर हो, कर्मक्षय करने की उमंग हो, उन्नत भावना हो, वहाँ पारितापनिकीक्रिया नहीं होती। जीवों के सक्रियत्व अक्रियित्व की प्ररूपणा १५७३. जीवा णं भंते ! किं सकिरिया अकिरिया ? गोयमा ! जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि । . से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि ? गोमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य । तत्थ णं जे ते असंसारसमावण्णगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अकिरिया । तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णगा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सेलेसिपडिवण्णगा य असेलेसिपडिवण्णगा य । तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं अकिरिया । तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवण्णग़ा ते णं सकिरिया । से एतेणट्टेणं गोयमा । एवं वुच्चति जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि। - [ १५७३ प्र.] भगवन् ! जीव सक्रिय होते हैं, अथवा अक्रिय (क्रियारहित ) होते हैं ? [उ.] गौतम ! जीव सक्रिय (क्रिया - युक्त) भी होते हैं और अक्रिय (क्रियारहित) भी होते हैं । [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा गया है कि जीव सक्रिय भी होते हैं और अक्रिय भी होते हैं? [उ.] गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा- संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक । उनमें से जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध (मुक्त) अक्रिय ( क्रियारहित) होते हैं और उनमें से जो संसारसमापन्नक हैं, वे भी दो प्रकार के हैं - शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। उनमें से जो शैलेशीप्रतिपन्नक होते हैं, वे अक्रिय हैं और जो अशैलेशी - प्रतिपन्नक होते हैं, वे सक्रिय होते हैं । हे गौतम ! इसी कारण १. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४३६, २. वही, पत्र ४३६
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy