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________________ .. . . . काम लिएप TRIC ४६२] [प्रजाफ्ना सूत्र इसी प्रकार कहनी चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा से भी वह चतुःस्थानपतित है। ५५७. [१] जहण्णगुणकालयाणं भंते! पोग्गलाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ताः ।। गोयमा! अणंता। 'सेकेणद्वेणं ? गुणकालयस्स पग्गिलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ल, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस फोसपज्जवेहि य छट्ठाणवडितें, से एएणठेणं गोयमा! एवं वुच्चति जहण्णगुणकालयाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता। [५५७-१ प्र.] भगवन् ! जघन्यगुण काले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५५७-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्तपर्याय (कहे हैं)। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है. (कि जघन्यगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं?) [उ.] गौतम! एक जघन्यगुण काला पुद्गल, दूसरे जघन्यगुण काले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की दृष्टि से तुल्य है, शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। हे गौतम! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहें हैं। [२] एवं उक्कोसगुणकालए वि। [५५७-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले पुद्गलों की पर्याय-सम्बन्धी वक्तव्यता समझती चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव। नवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते। [५५७-३] मध्यमगुण काले पुद्गलों के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। ५५८. एवं जहा कालवण्णपज्जाणं कतव्वया भणिता तहा सेसाघा विः वण्ण-गंध-रसफासपज्जवाणं क्त्तव्वया भाणितव्वा, जाव अजहषणमणुक्कोसलुक्खे मट्ठाणे छट्ठाणवडिते। सेत्तं रूविअजीवपजवा। से सं अजीवपज्जवा। ॥ पण्णवणाए भगवईए पंचमं विसेसपाहपजवषयक समक्त: ।। [५५८] जिस प्रकर कृष्णवर्ण के पर्यायों के विषय में वक्तव्यता कही है उसी प्रकार शेष वर्णों, गन्धों, रसों और स्पर्शो की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता कहनी चाहिए, यावलअजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण रूक्षस्पर्श स्वस्थान में षट्स्थानपतित है, यहाँ तक कहना चाहिए।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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