SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४३९ एक प्रदेशवगाढ़ परमाणु प्रदेशों की दृष्टि से षट्स्थानपतित हानि-वृद्धिशील द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य होने पर भी प्रदेशों की अपेक्षा से इसमें षट्स्थानपतित हीनाधिकता है; क्योंकि एक प्रदेशी परमाणु भी एक प्रदेश में रहता है और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी एक ही प्रदेश में रह सकता है। किन्तु अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है। स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है तथा वर्णादि एवं चतुःस्पर्शों की दृष्टि से षट्स्थानपतित होता है। असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल स्ववगाहना की दृष्टि से चतुःस्थानपतित—चूंकि लोकाकाश के असंख्यात ही प्रदेश हैं, जिनमें पुद्गलों का अवगाहन है। अतः अनन्तप्रदेशों में किसी भी पुद्गल की अवगाहना संभव नहीं है। ____ संख्यातगुण काला पुद्गल स्वस्थान में द्विस्थानपतित–संख्यातगुण काला पुद्गल या तो संख्यातभाग हीन कृष्ण होता है अथवा संख्यातगुण हीन कृष्ण होता है। अगर अधिक हो तो संख्यातभाग अधिक या असंख्यातगुण अधिक होता है। अनन्तगुण काला पुद्गल स्वस्थान में षट्स्थानपतित—अनन्तगुण काले एक पुद्गल में दूसरा अनन्तगुण काला पुद्गल अनन्तभाग हीन, असंख्यातभाग हीन, संख्यातभाग हीन, अथवा संख्यातगुण हीन, असंख्यातगुण हीन अनन्तगुण हीन होता है। यानी वह षट्स्थानपतित होता है। जघन्यादि विशिष्ट अवगाहना एवं स्थिति वाले द्विप्रदेशी से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक की पर्यायप्ररूपणा ५२५. [१] जहण्णोगाहणगाणं भंते! दुपएसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति? गोयमा! जहण्णोगाहणए दुपएसिए खंधे जहण्णोगाहणगस्स दुपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठितीए चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, सेसवण्ण-गंध-रसपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, सीय-उसिण-णिद्ध-लुक्खफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, से तेणटेणं गोतमा! एवं वुच्चति जहण्णोगाहणगाणं दुपएसियाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता। [५२५-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५२५-१ उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं। १. (क) प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक २०३ (ख) प्रज्ञापना. प्र. बो. टीका, पृ. ८१४ से ८१९ २. (क) प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक २०३-२०४ (ख) प्रज्ञापना. प्र. बो. टीका, पृ. ८२१-८२२
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy