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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [३६७ [४२९-१ उ.] गौतम! जघन्य चौवीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की है। [२] हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । [४२९-२ प्र.] भगवन् ! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४२९-२ उ.] गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। [३] हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं चउवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणुवीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई। [४२९-३ प्र.] भगवन् ! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? ___[४२९-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौवीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की है। ४३०. [१] मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं पणुवीणं सागरोवमाई, उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाइं। [४३०-१ प्र.] भगवन् ! मध्यम-अधस्तन (बीच के त्रिक में सबसे निचले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४३०-१ उ.] गौतम! जघन्य पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्ट छव्वीस सागरोपम की है। [२] मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [४३०-२ प्र.] भगवन्! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४३०-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा.। गोयमा! जहण्णेणं पणुवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। [४३०-३ प्र.] भगवन्! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही ___ [४३०-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छव्वीस सागरोपम की है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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