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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [३६०-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहूत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिदियाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [३६०-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई [३६०-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन रात्रि-दिन की है। ३६१. सुहुमतेउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण य जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। __ [३६१] सूक्ष्म तेजस्कायिकों के औधिक (सामान्य), अपर्याप्त और पर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। ३६२. [१] बादरतेउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिंदियाइं। [३६२-१ प्र.] भगवन् ! बादर तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [३६२-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन रात्रिदिन की है। [२] अपज्जत्तयबादरतेउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३६२-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही [३६२-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिंदियाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [३६२-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [३६२-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन रात्रि-दिन की है। ३६३. [१] वाउकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई। [३६३-१ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३६३-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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