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________________ १४ [प्रज्ञापना सूत्र जिणवरेणं भगवया—सामान्य केवली भी जिन कहलाते हैं किन्तु इसके 'वर' शब्द जोड़ने से सामान्य केवललियों से भी वर-उत्तम तीर्थंकर सूचित हो सकते हैं, किन्तु छद्मस्थ-क्षीणमोह-जिन की अपेक्षा से सामान्यकेवली भी 'जिनवर' कहला सकते हैं, अतः तीर्थंकर अर्थ द्योतित करने हेतु 'भगवया' विशेषण लगाया गया। भगवान् महावीर में समग्र ऐश्वर्य (अष्ट महाप्रातिहार्य, त्रैलोक्याधिपतित्व आदि), धर्म, यश, श्री, वैराग्य एवं प्रयत्न ये ६ भगवत्तत्व थे, इसलिए यहाँ 'तीर्थंकर भगवान् महावीर ने' यही अर्थ स्पष्टतः सूचित होता है। भवियजणणिव्वुइकरेणं-इसके दो अर्थ फलित होते हैं तथाविध अनादिपारिणामिक-भाव के कारण जो सिद्धिगमनयोग्य हो, वह भव्य कहलाता है। ऐसे भव्यजनों को जो निर्वृति—निर्वाण, शान्ति या निर्वाण के कारणभूत सम्यग्दर्शनादि प्रदान करने वाले हैं। निर्वाण का एक अर्थ है—समस्त कर्ममल के दूर होने से स्वस्वरूप के लाभ से परम स्वास्थ्य। प्रश्न यह है कि ऐसे निर्वाण के हेतुभूत सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय भी केवल भव्यजनों को ही भगवान् देते हैं, यह तो एक प्रकार का पक्षपात हुआ भव्यों के प्रति । इसका समाधान यह है कि सूर्य सभी को समानभाव से प्रकाश देता है, किन्तु उस प्रकार के योग्य चक्षुष्मान् प्राणी ही उससे लाभ उठा पाते हैं, तामस खगपक्षी (उल्लू आदि) को उसका प्रकाश उपकारक नहीं होता, वैसे ही भगवान् सभी प्राणियों को समानभाव से उपदेश देते हैं, किन्तु अभव्य जीवों का स्वभाव ही ऐसा है कि वे भगवान् के उपदेश से लाभ नहीं उठा पाते। उवदंसिया—जैसे श्रोताओं को झटपट यथार्थवस्तुतत्वबोध समीप से होता है, वैसे ही भगवान् ने स्पष्ट प्रवचनों से श्रोताओं के लिए यह (प्रज्ञापना) श्रवणगोचर कर दी, उपदिष्ट की। पण्णवणा-प्रज्ञापना—जीवादि भाव जिस शब्दसंहति द्वारा प्रज्ञापित-प्ररूपित किये जाते हैं। प्रज्ञापनासूत्र के छत्तीस पदों के नाम २. पण्णवणा १ ठाणाई २ बहुवत्तव्वं ३ ठिई ४ विसेसा य ५। वक्कंती ६ उस्सासो ७ सण्णा ८ जोणी य ९ चरिमाई १० ॥४॥ भासा ११ सरीर १२ परिणाम १३ कसाए १४ इंदिए १५ पओगे य १६ । लेसा १७ कायठिई या १८ सम्मत्ते १९ अंतकिरिया य २० ॥५॥ ओगाहणसंठाणे २१ किरिया २२ कम्मे त्ति यावरे २३। कम्मस्स बंधए २४ कम्मवेदए २५ वेदस्स बंधए २६ वेयवेयए २७ ॥६॥ १. ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। वैराग्यस्याथ प्रयत्नस्य षण्णां भग इतीङ्गना।—प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक-३-४ २. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्रांक २
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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