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________________ [३५७ तृतीय शतक : उद्देशक-५] वाली) पताका लेकर चलने वाले पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? _ [७-१ उ.] गौतम! यहाँ सब पहले की तरह कहना चाहिए, (अर्थात् वह ऐसे वैक्रियकृत रूपों से समग्र जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है) परन्तु कदापि इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। __ [२] एवं दुहओपडागं पि। [७-२] इसी तरह दोनों ओर पताका लिये हुए पुरुष के जैसे रूपों की विकुर्वणा के सम्बन्ध में कहना चाहिए। ८. से जहानामए केइ पुरिसे एगओजण्णोवइतं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भा० एगओजण्णोवइतकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पतेज्जा ? हंता, उप्पतेजा। [८ प्र.] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करके चलता है, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की तरह स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? [८ उ.] हाँ, गौतम! उड़ सकता है। ९.[१] अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाई प्रभू एगतोजण्णोवतितकिच्चगयाइं रूवाइं विकुवित्तए ? तं चेव जाव विकुव्विंसु वा ३। [९-१ प्र.] भगवन्! भावितात्मा अनगार कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? [९-१ उ.] गौतम! पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए। (अर्थात् ऐसे वैक्रियकृत रूपों से वह सारे जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है।) परन्तु इतने रूपों की विकुर्वणा कभी की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। [२] एवं दुहओजण्णोवइयं पि। [९-२] इसी तरह दोनों ओर यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की तरह रुपों की विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। १०. [१] से जहानामए केइ पुरिसे एगओपल्हत्थियं काउं चिठेजा एवामेव अणगारे वि भावियप्पा ? तं चेव जाव विकुव्विसु वा ३। [१०-१ प्र.] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ पल्हथी (पालथी) मार कर बैठे, इसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी (पल्हथी मार कर बैठे हुए पुरुष के समान) रूप बना कर स्वयं आकाश में
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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