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________________ में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है और न अपने आप में ये कोई अच्छे सवाल ही हैं। सवाल तो सिर्फ इतना है कि समय पर अन्याय का उचित प्रतिकार न करने से भविष्य में क्या होता है? हिन्दू हो या मुसलमान, कोई भी हो, अन्याय का प्रतिकार होना चाहिए, केवल वर्तमान की हिंसा या अहिंसा को न देखकर, उसके भविष्य कालीन दूरगामी परिणामों को देखना चाहिए। वर्तमान की सीमित दृष्टि कभी-कभी सर्वनाश कर डालती है। राजा चेटक का धर्मयुद्ध इस बड़ी और छोटी हिंसा के विश्लेषण को और अधिक स्पष्ट करने के लिए मैं एक उदाहरण आपके समक्ष रख रहा हूँ-वह है कूणिक और चेडा राजा (राजा चेटक) के युद्ध का। भगवान् महावीर के समय का यह बहुत बड़ा भयानक युद्ध था, जिसका उल्लेख तत्कालीन धर्म परम्पराओं के साहित्य में है। सुप्रसिद्ध वैशाली गणतंत्र के मान्य अध्यक्ष राजा चेटक एक महान् बारह व्रतधारी श्रावक थे। दूसरी ओर मगध सम्राट कूणिक थे, जिसने कि वैशाली पर आक्रमण किया था। उक्त युद्ध के मूल में एक शरणागत का प्रश्न था। प्रसंग यह है कि कणिक अपने छोटे भाई के हक को छीन रहा था, उसकी स्वतंत्रता और सम्पत्ति को हड़प रहा था। राजकुमार पर भय छा गया। वह अपने बचाव के लिए चेटक राजा के पास पहुँच गया, शरणागत के रूप में। कूणिक को जब यह मालूम हुआ कि वह वैशाली में चेटक राजा के पास पहुँच गया है, तो उसने चेटक राजा को यह कहलवाया कि-"तुम उसको यों का यों वापस लौटाओ, अन्यथा , इसके लिए तुम्हें युद्ध का परिणाम भोगना पड़ेगा।" राजा चेटक ने शरणागत की रक्षा में युद्ध का वरण किया। भयंकर युद्ध हुआ, लाखों ही वीर काल के गाल में पहुँच गए। स्वयं चेटक नरेश भी वीरगति को प्राप्त हुए। अब प्रश्न है एक शरणागत की रक्षा का। अगर राजा चेटक उस एक शरणागत को लौटा देता, भले ही उसके साथ कुछ भी करता क्रुद्ध कणिक, तो लाखों ही लोगों के प्राणों की रक्षा हो जाती। यदि राजा चेटक हिंसा अहिंसा का वह विश्लेषण करता, जैसा कि आजकल कुछ लोग अपने मस्तिष्क में इस प्रकार की विचारधारा रखते हैं, तो उसके मुताबिक वह अवश्य ही राजकुमार को वापस लौटा देता। कह देता कि"भाई तू यहाँ चला तो आया है। लेकिन तेरी रक्षा कैसे कर सकता हूँ? तेरी एक की रक्षा में, लाखों आदमी युद्ध में मारे जाएँगे। एक के बचाने में लाखों आदमी मारे जाने पर तो बहुत बड़ी हिंसा हो जाएगी।" परन्तु राजा चेटक ने ऐसा कुछ 82 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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