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________________ बार उसे पता लग गया कि ये जो हिन्दू हैं, गाय पर आक्रमण नहीं करते। अतः उस धूर्त ने क्या काम किया कि अपने नये आक्रमण में सेना के आगे गायों को रखा । आगे-आगे गायें चल रही थीं और पीछे-पीछे उसकी सेनाएँ युद्ध के लिए बढ़ रही थीं। अब यहाँ के वीर राजपूत धर्माधर्म की विचित्र उलझन में पड़ गए। उनमें अद्भुत शक्ति थी लड़ने की। कई बार गोरी को हराया भी था। लेकिन इस बार वे गड़बड़ा गए कि भाई, युद्ध तो कर रहे हैं, लेकिन यदि किसी गाय को बाण लग गया और गाय मर गई तो गो-हत्या का पाप लग जाएगा । और यह बहुत बड़ा भयंकर पाप हेगा। बस, इधर वीर रापजूत गायों को बचाने के विचार में उलझ गए और उधर शत्रु को तो कोई मतलब था नहीं इन बातों से । लड़ाई होती रही। गायों को बचाने के लिए राजपूत पीछे हटते रहे, निर्णायक प्रत्याक्रमण नहीं कर सके। परिणाम यह हुआ कि आखिर राजपूत सेना, जो विजय प्राप्त कर सकती थी, जिसमें भरपूर ताकत थी लड़ने की और विजय प्राप्त करने की, वह पराजित हो गई और देश गुलाम हो गया। यहाँ यदि आप विश्लेषण करते हैं ठीक तरह से, तो विचार करना पड़ेगा कि यह जो गोहत्या के सम्बन्ध में चिन्तन था, वह कितनी गलत दिशा में था । वीर राजपुतों ने यह तो देखा कि वर्तमान में हमारे बाणों से सम्भव है कुछ गाये मर जाएँ, किन्तु उन्होंने भविष्य को नहीं देखा कि क्या होने वाला है? आनेवाले आक्रमणकारियों के लिए तो गाय-भैंस जैसा कुछ भी विचारणीय न था । यह सब तो उनके भक्ष्य ही थे। उन थोड़ी-सी गायों को मारने या बचाने के पाप पुण्य का अथवा हिंसा-अहिंसा का कोई मूल्य नहीं था उनकी दृष्टि में। अतः वे पूरी शक्ति से लड़े और जीते। इस युद्ध के सम्बन्ध में आप विचार करके देखेंगे तो आपको मालूम होगा कि उन थोड़ी बहुत गायों को बचाने का क्या अर्थ रहा? कुछ गायों की रक्षा के काम में वे पराजित हो गये देश गुलाम हो गया । इतिहास पर नजर डालिए, इसके बाद कितनी गोहत्याएँ हुईं, कितनी मानव हिंसाएँ हुई और कितने अनाचार - दुराचार और कितने पापाचार हुए हैं। देश मिट्टी में मिलता चला गया और भारत की भव्य संस्कृति, सभ्यता, कल्चर ( Culture) सब कुछ समाप्त होती चली गई। धर्म परम्पराओं को कितनी क्षति पहुँची । धर्म परम्पराओं को इस तरह से बर्बाद किया गया कि उनका निर्मल रूप ही विकृत हो गया । केवल गायों का ही सवाल नहीं रहा। हजारों माताओं और बहनों की बेइज्जतियाँ भी हुईं। यह हिन्दू और मुसलमान का सवाल नहीं रहा। इस प्रकार के सवालों धर्म - युद्ध का आदर्श 81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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