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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः
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है। 'मिदचोऽन्त्यात् परः ' (१।१।४६) से षिच्' के अन्तिम अच् से उत्तर होता है । 'स्तो: चुना श्चुः' (८ | ४ | ३९ ) से नकार को चुत्व ञकार होता है ।
विशेषः पाणिनि मुनि ने धातुपाठ में 'आदेशप्रत्यययो:' ( ८1३1५९) से षत्व-व्यवस्था के लिये कुछ धातुओं को षकारादि पढ़ा है। उन षकारादि धातुओं के षकार को इस सूत्र से सकार आदेश विधान किया गया है।
न-आदेशः
(६) णो नः । ६५ ।
प०वि० - णः ६ । १ नः १ । १ । अनु०-धात्वादेरित्यनुवर्तते ।
अन्वयः - धात्वादेर्णो नः ।
अर्थ:- धात्वादेर्णकारस्य स्थाने नकरादेशो भवति । उदा० - णीञ् - नयति । णम नमति । णह नह्यति ।
आर्यभाषाः अर्थ- (धात्वादेः) धातु के आदि के (णः) णकार के स्थान में (नः) नकार आदेश होता है ।
उदा०
- णीञ् - नयति । वे ले जाता है। णम-नमति । वह झुकता है । णह-नह्यति । वह बांधता है।
सिद्धि-(१) नयति । णीञ्+लट् । नी+तिप् । नी+शप्+ति । नी+अ+ति । ने+अ+ति । नय्+अ+ति। नयति ।
यहां 'णीञ् प्रापणे' (भ्वा०उ०) धातु से लट् प्रत्यय है। इस सूत्र से णीञ् धातु के आदिम णकार को नकार आदेश होता है। 'कर्तरि शप्' (३/१/६८) से 'शप्' विकरण प्रत्यय, 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' ( ७।३।८४) से अंग को गुण और 'एचोऽयवायावः' (६ /१/७६ ) से अय् आदेश होता है।
(२) नमति। यहां 'णम प्रहृत्वे शब्दे च' (भ्वा०प०) धातु से लट् प्रत्यय है। इस सूत्र से 'णम' धातु के आदिम णकार को नकार आदेश होता है।
(३) नह्यति। यहां 'णह बन्धने' ( दि०प०) धातु से लट् प्रत्यय है। इस सूत्र 'ह' धातु के आदिम णकार को नकार आदेश होता है।
विशेषः पाणिनि मुनि ने धातुपाठ में 'उपसर्गादसमासेऽपि णोपदेशस्य' (८।४ 1१४) से णत्व-विधि की व्यवस्था के लिये कुछ धातुओं को णकारादि पढ़ा है। इस सूत्र से उनके कार को नकार आदेश विधान किया गया है,
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