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________________ ३४८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-द्वयोर्बहूनां वा एकस्य निर्धारणे एकाच्च डतरच् डतमच्च प्राचाम्। अर्थ:-द्वयोर्बहूनां वा एकस्य निर्धारणेऽर्थे वर्तमानाद् एक-शब्दाच्च यथासंख्यं डतरच् डतमच्च प्रत्ययो भवति, प्राचामाचार्याणां मतेन । उदा०-एकतरो भवतोदेवदत्त: (डतरच्) । एकतमो भवतां देवदत्त: (डतमच्)। ___ आर्यभाषा: अर्थ-(द्वयोः) दो में से अथवा (बहूनाम्) बहुतों में से (एकस्य) एक के (निर्धारणे) पृथक् करने अर्थ में विद्यमान (एकात्) एक प्रातिपदिक से (च) भी यथासंख्य (डतरच्) डतरच् और (डतमच्) डतमच् प्रत्यय होते हैं (प्राचाम्) प्राग्देशय आचार्यों के मत में। उदा०-आप दोनों में एकतर-कोई एक देवदत्त है (डतरच्)। आप सब में एकतम-कोई एक देवदत्त है (डतमच्)। सिद्धि-(१) एकतरः । एक+सु+डतरच् । एक+अतर। एकतर+सु । एकतरः। यहां निर्धारण अर्थ में विद्यमान एक' शब्द से प्रागदेशीय आचार्यों के मत में इस सूत्र से 'डतरच्' प्रत्यय है। वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से अंग के टि-भाग (अ) का लोप होता है। (२) एकतम: । यहां पूर्वोक्त 'एक' शब्द से पूर्ववत् 'डतमच्’ प्रत्यय है। अवक्षेपणार्थप्रत्ययविधि: कन् (१) अवक्षेपणे कन्।६५। प०वि०-अवक्षेपणे ७१ कन् १।१ । अन्वय:-अवक्षेपणे प्रातिपदिकात् कन्। अर्थ:-अवक्षेपणे कुत्सार्थे वर्तमानात् प्रातिपदिकात् कन् प्रत्ययो भवति। उदा०-अवक्षिप्तं व्याकरणम्-व्याकरणकम् । व्याकरणकेन त्वं गर्वित: । अवक्षिप्तं याज्ञिक्यम्-याज्ञिक्यकम्। याज्ञिक्यकेन त्वं गर्वितः । आर्यभाषा: अर्थ-(अवक्षेपणे) कुत्सा=निन्दा अर्थ में विद्यमान प्रातिपदिक सें (कन्) कन् प्रत्यय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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