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________________ चतुर्थाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(ऋत्) की। हीं। (न:) दण्डिनी। छत्रिणी। आर्यभाषा: अर्थ-(ऋन्नेभ्यः) ऋकारान्त और नकारान्त प्रातिपदिकों से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीप्) डीप्-प्रत्यय होता है। उदा०-(ऋकारान्त) कीं। करनेवाली। हीं । हरनेवाली। (नकारान्त) दण्डिनी। दण्डवाली। छत्रिणी। छत्रवाली। सिद्धि-(१) कीं। यहां ऋकारान्त कर्तृ' प्रातिपदिक से इस सूत्र से डीप्' प्रत्यय होता है। 'इको यणचि' (६।११७४) से 'यण' आदेश होता है। ऐसे ही- 'हर्त' शब्द से-हीं। (२) दण्डिनी। दण्ड+इनि। दण्डिन्+डीप् । दण्डिनी+सु । दण्डिनी। यहां नकारान्त 'दण्डिन्' प्रातिपदिक से इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय है। ऐसे ही छत्रिन् प्रातिपदिक से-छत्रिणी। डीप (२) उगितश्च ।६। प०वि०-उगित: ५।१ च अव्ययपदम्। स०-उक् इद् यस्य तद् उगित्, तस्मात्-उगित: (बहुव्रीहि:)। अनु०-डीप् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-उगितश्च स्त्रियां डीप्। अर्थ:-उगित: प्रातिपदिकाद् अपि स्त्रियां डीप् प्रत्ययो भवति । उदा०-भवती। पचन्ती। यजन्ती। आर्यभाषा: अर्थ-(उगित:) उक्' इत्वाले प्रातिपदिक से (च) भी (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीप्) डीप् प्रत्यय होता है। उदा०-भवती। आप (स्त्री)। पचन्ती। पकाती हुई। यजन्ती। यज्ञ करती हुई। सिद्धि-(१) भवती। भवतु+डीप्। भवत्+ई। भवती+सु । भवती। यहां सर्वादिगण (१।१।२७) में पठित 'भवतु' प्रातिपदिक के उगित् होने से इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय होता है। (२) पचन्ती। पच्+लट् । पच्+शतृ । पच्+शप्+अत् । पचत्+सु। पचनुम्त्+स् । पचन्त्+० । पचन्त्+डी । पचन्त्+ई। पचन्ती+सु। पचन्ती। यहां पच्' धातु से लट्' प्रत्यय और उसके स्थान में लक्षणहेत्वोः क्रियायाः' (३।२।१२४) से शतृ' प्रत्यय है। 'शतृ' प्रत्यय के उगित् होने से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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